रायपुर, 24 सितम्बर 2021/ सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 का समय पर पालन नहीं करने और समय पर आवेदक को जानकारी उपलब्ध नहीं कराने के कारण सूचना का अधिकार अधिनियम के प्रति घोर लापरवाही और अज्ञानता के लिए तत्कालीन दो जनसूचना अधिकारियों को 25-25 रूपए अर्थदण्ड अधिरोपित करते हुए अधिरोपित राशि तत्काल जमा कर चालान की प्रति आयोग को प्रेषित करने निर्देश दिए हैं। यह कार्यवाही छत्तीसगढ़ राज्य सूचना आयोग के राज्य सूचना आयुक्त श्री धनवेन्द्र जायसवाल ने की है।
शिकायकर्ता श्री शरद देवांगन ने जनसूचना अधिकारी (सचिव) ग्राम पंचायत चिचगोहना और ग्राम पंचायत पथर्रा, विकासखण्ड मरवाही जिला गौरला-पेण्ड्रा-मरवाही से एक अप्रैल 2006 से 31 मार्च 2016 के मध्य स्वच्छ संधारित समस्त चेक रजिस्टर,लेजर, कैशबुक एवं मूलभूत मद में किए गए व्यय के समस्त् व्हाउचर्स की सत्यापित प्रति की 27 अप्रैल 2016 को मांग की थी। सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 7 (1) के तहत आवेदन प्राप्ति के 30 दिवस के भीतर जानकारी आवेदक को देना होता है, किन्तु जनसूचना अधिकारी ने समय सीमा में जानकारी आवेदक को नहीं उपलब्ध कराया। जानकारी प्राप्त न होने के कारण आवेदक ने प्रथम अपीलीय अधिकारी को आवेदन किया कि जानकारी उपलब्ध कराएं, किन्तु प्रथम अपीलीय अधिकारी मुख्यकार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायत मरवाही के विनिश्चय (निर्णय) के बाद भी जनसूचना अधिकारियों ने आवेदक को जानकारी नहीं उपलब्ध कराया।
जानकारी प्राप्त नहीं होने के कारण आवेदक ने राज्य सूचना आयुक्त धनवेन्द्र जायसवाल ने प्रकरण का बारिकी से परीक्षण किया और आवेदक को जानकारी उपलब्ध नहीं कराने पर सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 20(1) के तहत दोनों प्रकरणों पर तत्कालीन जनसूचना अधिकारी (सचिव) ग्राम पंचायत चिचगोहना श्री बीरबल प्रजापति और सचिव ग्राम पंचायत पथर्रा श्रीमती गीता मार्को विकासखण्ड मरवाही जिला गौरला-पेण्ड्रा-मरवाही को 25-25 रूपए अर्थदण्ड अधिरोपित करते हुए मुख्यकार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायत मरवाही को निर्देश दिए हैं कि अर्थदण्ड की राशि की वसूली संबंधित जनसूचना अधिकारी के वेतन से काटकर शासकीय कोष में जमा कराकर आयोग को पालन प्रतिवेदन प्रेषित करें। ज्ञातव्य है कि पूर्व राज्य सूचना आयुक्त ने सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 19(8)(ख) के तहत दोनों प्रकरणों पर तत्कालीन जनसूचना अधिकारी 500-500 रूपए की क्षतिपूर्ति दिलाने आदेश भी किए हैं।
सरकारी प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने के लिए साल 2005 में सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून बनाया था। इस कानून के तहत भारत का कोई भी नागरिक सरकार के किसी भी विभाग की जानकारी हासिल कर सकता है। सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 7 में प्रावधान किया गया कि जनसूचना अधिकारी, आवेदक के द्वारा मांग की गई सूचना को 30 दिन के भीतर आवेदक को उपलब्ध कराएगा, जो उसके कार्यालय में संधारित किया गया है। कोई जनसूचना अधिकारी जानकारी देने से मना करता है, तो उसको इसका वास्तविक कारण बताना होगा, साथ ही इस संबंध में किसे अपील की जाए इसकी भी जानकारी देगा। सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 20 के तहत अगर कोई जनसूचना अधिकारी निर्धारित समय पर आवेदक को जानकारी नहीं देता है, तो उस पर 250 रुपये प्रति दिवस की दर से जुर्माना लगाया जाएगा। जुर्माने की यह राशि 25 हजार से ज्यादा नहीं होगी। इसके अलावा राज्य सूचना आयोग ऐसे अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की अनुशंसा कर सकते हैं।