संविधान में प्रावधान : केंद्रीय करों में राज्य की हिस्सेदारी
रायपुर/06 अक्टूबर 2021। केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेट्रोल-डीजल के बढ़े हुए मूल्य तथा छत्तीसगढ़ को जी.एस.टी एवं अन्य केंद्रीय योजनाओं के लिए राशि दिए जाने पर कड़ी टिप्पणी करते हुए प्रदेश कांग्रेस कमेटी के वरिष्ठ प्रवक्ता एवं पूर्व विधायक रमेश वर्ल्यानी ने कहा कि जी.एस.टी क्षतिपूर्ति की राशि देने की जवाबदेही केंद्र सरकार की है, क्योंकि जी.एस.टी लागू करते समय ही केंद्र सरकार ने इसकी गारंटी ली थी। जी.एस.टी कौंसिल का इससे कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन वित्तमंत्री अपनी जवाबदेही से बचने के लिए कौंसिल की आड़ ले रही है। उन्होंने कहा कि आज भी छत्तीसगढ़ को जी.एस.टी क्षतिपूर्ति बकाया राशि 2262 करोड़ रूपये केंद्र से लेना है जिसमें से 887 करोड़ रूपया एक साल पुराना बकाया है। केंद्रीय करों की राशि दिए जाने पर उन्होंने कहा कि देश के संविधान में केंद्र-राज्यों के बीच केंद्रीय करों के बंटवारे को लेकर स्पष्ट व्यवस्था निर्धारित है जिसके अनुसार संघीय व्यवस्था में केंद्रीय करों में 42 प्रतिशत हिस्सा राज्यों को दिया जाना है। लेकिन मोदी सरकार ने केंद्रीय करों के हिस्से में भी कटौती करने की नियत से इसे सेस में ट्रांसफर करना शुरू कर दिया है। गत वर्ष के बजट में पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स, खाद्य तेल तथा अन्य वस्तुओं पर लगने वाले केंद्रीय करों को सेस में डाल दिया। इससे छत्तीसगढ़ को मिलने वाले राजस्व में 1500 करोड़ रू. का नुकसान हुआ।
कांग्रेस प्रवक्ता रमेश वर्ल्यानी ने कहा कि आज पेट्रोल-डीजल 100 रू. के पार हो गया है। इसका एकमात्र कारण केंद्र की एक्साइज ड्यूटी में मनमाने ढंग से बढ़ोत्तरी है। वर्ष 2014 में जब मोदी सरकार ने सत्ता संभाली, उस वक्त अंतर्राष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल की कीमत गिरकर 44 डॉलर प्रति बैरल तक पहुॅंच गई थी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसका श्रेय स्वयं की किस्मत को दिया था। तब भी केंद्र सरकार ने क्रूड ऑयल की कीमतों में भारी गिरावट से जनता को राहत देने के बजाए, इस पर भारी भरकम एक्साइज ड्यूटी लगाकर पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कमी नहीं की। तब से यह सिलसिला बदस्तूर आज भी जारी है। यू.पी.ए के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के समय पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी रू. 9.48 तथा डीजल पर रू. 3.56 था जो मोदी राज में बढ़कर पेट्रोल एवं डीजल पर 33 रू. हो गयी है। लेकिन केंद्र सरकार एक्साइज ड्यूटी की बढ़ोत्तरी से ध्यान भटकाने के लिए हमेशा राज्यों को सलाह देती है कि वे वेट की दरों में कमी करके राहत पहुँचायें जबकि पिछले 15 सालों से वेट की दरें यथावत् हैं। उन्होंने कहा कि पेट्रोल-डीजल के मूल्यों में कमी लाने का एकमात्र हल एक्साइज ड्यूटी में कटौती करना ही है। एक्साइज ड्यूटी में कमी होने पर, वेट टैक्स उस अनुपात में स्वयमेव कम हो जाएगा और जनता को राहत मिलेगी। लेकिन केंद्र सरकार को आम आदमी के हितों से कोई सरोकार नहीं है। मोदी सरकार ने पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी के माध्यम से 23 लाख करोड़ रू. जनता से लूट लिए और कार्पोरेट घरानों के कंपनियों की कार्पोरेट टैक्स में 10 प्रतिशत कमी करके उन्हें 1,46,000 करोड़ रू. का टैक्स बेनिफिट दे दिया। मोदी सरकार की प्राथमिकता में बड़े उद्योग घराने हैं, आम जनता नहीं ?