रायपुर। भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय ने झीरम मामले में राज्यपाल सुश्री अनुसुइया उईके को जांच प्रतिवेदन सौपें जाने के बाद कांग्रेस और प्रदेश सरकार की बौखलाहट और एक नए जांच आयोग के गठन की घोषणा से यह साफ हो गया है कि प्रदेश सरकार अपने एक मंत्री की संलिप्तता को लेकर विचलित है और वह मंत्री व उनके नक्सली कनेक्शन के बेनकाब होने से डरी हुई है।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष साय झीरम मामले में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा राज्यपाल को जांच प्रतिवेदन सौंपे जाने पर उठाए जा रहे सवालों पर पलटवार करते हुए कहा कि कांग्रेस का इतिहास इस बात का गवाह है कि जब-जब किसी जांच आयोग की रिपोर्ट में उसकी सरकार व पार्टी नेताओं का चरित्र दागदार होता है तो वह जांच आयोग की रिपोर्ट ही गायब कर देती है। ऐसे दसियों उदाहरण दिए जा सकते हैं और शाह आयोग की जांच रिपोर्ट तो इसका सबसे प्रमुख उदाहरण है जिसने आपातकाल की ज्यादतियों की जांच कर अपना प्रतिवेदन जनता सरकार के पतन के बाद पुनः प्रधानमंत्री बने इंदिरा गांधी को सौंपी थी और उसके उसके बाद देश इस जांच प्रतिवेदन के सत्य और तथ्य से ही आज तक नावाकिफ है। साय ने कहा कि सरकार की कैबिनेट के किसी सदस्य की संलिप्तता को देखते हुए जांच आयोग ने अपना प्रतिवेदन सरकार के बजाय यदि राज्यपाल को सौंपा है तो प्रदेश सरकार इतना बिफर क्यों रही है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के नाते मौजूदा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने झीरम मामले के सबूत जेब में रखने की डींगे हांकी थी लेकिन जरूरत पड़ने पर वह सबूत पेश ही नहीं की उल्टे उस एनआईए की जांच प्रक्रिया पर सवाल उठाने और उसमें अड़ंगा डालने में ही अपना वक्त जाया किया। इस मामले की जांच का जिम्मा कांग्रेस नीत यूपीए की केंद्र सरकार ने सन् 2013 में सौंपा था।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष साय ने कहा कि किसी भी हत्याकांड या अनहोनी की जांच करते समय पुलिस सबसे पहले यह पता लगाती है कि इससे सर्वाधिक लाभ किसे होना है? अब प्रदेश सरकार और मुख्यमंत्री बघेल को यह साफ करते हुए प्रदेश को बताना चाहिए कि झीरम हत्याकांड का सर्वाधिक लाभ किस राजनीतिक नेता को होना था, और हुआ? साय ने कहा कि यह भी स्पष्ट होना चाहिए कि इस मामले के एक पुलिस के चश्मदीद मुखबिर से मिलने बिलासपुर कौन गया था, क्यों गया था, और किसने भेजा था? यह मुखबिर बाद में बागी क्यों हो गया था? श्री साय ने कहा कि इस मुद्दे पर अकारण विवाद खड़ा करके और नए आयोग के गठन की बात कहकर मुख्यमंत्री बघेल इस जांच प्रतिवेदन को विधानसभा के पटल पर रखे जाने से रोकने का असंवैधानिक कृत्य कर रहे हैं। इन्हीं सारे तथ्यों, आशंकाओं और कांग्रेस के राजनीतिक चरित्र के चलते झीरम मामले का जांच प्रतिवेदन राज्यपाल को सौंपा गया साय ने कहा कि झीरम मामले में एक नए आयोग की चर्चा छोड़कर सियासी शोशेबाजी का प्रदर्शन कर रहे हैं और उनके रवैए से निराश कांग्रेस के लोग ही अब मान रहे हैं कि प्रदेश की कांग्रेस सरकार इस मामले के सच को सामने आने से रोक रही है।