राजिम। छत्तीसगढ़ी दाई की भाखा है इसे बोलने एवं सुनने से अपनापन का बोध होता है। सबसे ज्यादा मिठास इसमे भरी हुई है। बचपन से अभी तक हजारो मंचो मे छत्ताीसगढ़ी में प्रस्तुति देना मेरे लिए गौरव की बात रही है। पंडवानी की परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए प्रदेश सरकार स्कूलो में पढ़ाई के लिए अलग से कक्षा चलाएं। इससे बच्चो की झुकाव धर्म के साथ-साथ ग्रंथो की ओर बढ़ेगी। उक्त बातें राजिम माघी पुन्नी मेला में प्रस्तुति देने पहुची प्रसिद्ध पंडवानी गायिका ऋतु वर्मा ने पत्रकारो से चर्चा के दौरान व्यक्त किया।
उन्होने आगे बताया कि 6 वर्ष की उम्र में पंडवानी की प्रस्तुति देना शुरू कर दी थी। 10 साल की उम्र में अगस्त 1989 को पहेली बार विदेश में प्रस्तुति दी। जापान की यह प्रस्तुति ने ऋतु वर्मा की प्रतिभा को उभारने का काम किया। ऋतु वर्मा ऐसी प्रतिभा सम्पन्न बाल कलाकार थी, जिन्होने शानदार प्रस्तुति देकर भारत का नाम विदेश में प्रसिद्ध कर वहां घुटनो के बल बैठकर और एक हाथ में तमुरा लेकर पूरे आत्मविश्वास के साथ महाभारत के प्रसंग पर बेबाक प्रस्तुति के रूप में पहचानी गई। अभी तक पन्द्रह हजार से भी अधिक कार्यक्रम प्रस्तुत कर चुकी है।
उन्होने बताया कि गुरू स्व. बंसल नायक एवं स्व. गुलाब दास मानिकपुरी है। वह महाभारत के कथा को बता देते थे और मुझे उसे दुहराने के लिए एक घंटा का समय देते थे। इस अंतराल मे मैं बार बार बोलकर कण्ठस्थ करती। महाभारत के 18 पर्व पूरी तरह से याद है। अभी तक स्कूल के बरामदे में कदम नही रखी है अर्थात उनकी पढ़ाई बिलकुल शुन्य है। फिर भी वह महौल मिलने से हिन्दी फटाफट बोल लेती है। अंग्रेजी के काम चलाउ शब्द के मिनिंग वह जानती है। 17 देशों में इन्होने पंडवानी की प्रस्तुति दी है। चार बार ब्रिटेन के लंदन के अलावा फ्रांस, अमेरिका, रूस, अर्जेनटाइना, इण्डोनेशिया आदि देशों में भारत का मान बढ़ाया है।
इन्हें बिस्मील्ला खां अवार्ड, कला श्री सम्मान, मानसिंह सम्मान, भुईया सम्मान आदि आवार्डेेड प्राप्त है। एक प्रश्न के जवाब में उन्होने बताया कि मुकाम तय करने के लिए मेहनत ईमानदारी के साथ हो तो सफलता जरूर मिलती है। पंडवानी सीखने के लिए मैं रात और दिन कोई भी समय बस कहीं भी बैठ कर प्रस्तुत करती रही, नतीजा बेदमती शैली में निपुर्णता का वरदान मिला। उन्होने बताया कि राजिम मे कई बार प्रस्तुति दी है। 2017 में भी कार्यक्रम दिया था, परन्तु अब छत्तीसगढ़ शासन के द्वारा अच्छी सुविधा दी जा रही है। जिसका मैं खुले मन से प्रशंसा करती हूँ। मुझे प्रसिद्धी नई दिल्ली संगीत नाटक अकादमी में मिली। वहां कार्यक्रम दे कर जापान जाने का अवसर मिला। नये कलाकारों को संदेश देते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ की परम्परा को जीवित रखें। आने वाले पीढ़ी इसे सहेज कर रखें। जबतक स्वांस है तब तक पंडवानी करती रहूँगी और इसे बढ़ाने का प्रयास करूंगी।