रायपुर, 12 मार्च /
सवा महीने की उम्र में शरीर की हड्डी टूट जाए। फिर हल्की चोट से भी शरीर की हड्डियां टूटने लगें और यह सिलसिला उम्र के 64वें वर्ष तक भी जारी रहे तो हड्डियों के साथ हौसला भी टूट जाए, लेकिन सुश्री साधना ढांड एक ऐसा नाम हैं, जिन्होंने 100 बार से ज्यादा हड्डियों के फ्रेक्चर को झेलने के बाद भी अपने हौसले को कभी टूटने नहीं दिया। खुद के असहनीय दर्द के बाद भी उसे भूलाकर जिनके मन में दूसरों की तकलीफ दूर करने का जज्बा रहा है। कई तरह की शारीरिक व्याधियों से पीड़ित होने के बाद भी सुश्री साधना ढांड ने कला की ‘साधना’ में अपना पूरा जीवन समर्पित कर रखा है। दिव्यांग सुश्री साधना ढांड एक बेहतरीन पेंटर, लाजवाब फोटोग्राफर और अकल्पनीय स्क्ल्पचर आर्टिस्ट हैं।
सुश्री साधना ढांड का जन्म एक अस्थिजन्य लाइलाज बीमारी के साथ हुआ है। आइस्टियोजेनेसिस इंपर्फक्टा नामक इस बीमारी में हड्डियां कांच की तरह होती हैं, जो हल्की चोट पर भी टूट जाती हैं। इस बीमारी ने शरीर के विकास को भी रोक दिया, और सुश्री साधना की ऊंचाई महज 3 फीट 3 इंच पर रुक गई। 9 साल की थीं तब श्रवण क्षमता भी कमजोर होने लगी और धीरे-धीरे सुनाई देना भी बंद हो गया। मां और परिवार के अन्य सदस्यों ने सुश्री साधना को जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया और पढ़ाई में शारीरिक व्याधि की समस्या को देखते हुए उन्हें कला की ओर मोड़ा।
मां बनी गुरु, सिखाया जीने का तरीका :
सुश्री साधना ढांड ने बताया कि विपरीत परिस्थितियों में भी हौसले को कायम रखने के लिए उन्हें मां ने तैयार किया। लगातार मां जीवन में सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती रहीं। इस बीच पेंटिंग व अन्य कलाओं की ओर रुझान बढ़ाने के लिए मां ने ही प्रथम गुरु की भूमिका निभाई। शुरुआती कई साल तक मां ही कागज और कैनवास पर रंग भरना सीखाती रहीं। फिर मां से पेंटिंग व अन्य रचनाकर्म का प्रशिक्षण लेने के बाद पेशेवर तरीके से महाकौशल फाईन आर्ट कॉलेज से विशेष योग्यता के साथ डिप्लोमा किया। शारीरिक व्याधियों के बावजूद सुश्री ढांड यहीं नहीं रुकीं, वे अन्य विधाओं में मूर्तिकला, बोनसाई, फोटोग्राफी जैसे नए प्रयोग से अपनी कला को परिष्कृत करती रही हैं।
अब तक 13 हजार से ज्यादा की बन चुकी हैं गुरु :
सुश्री साधना ढांड ने साल 1981 में दूसरों को भी अपनी कला को बांटने का विचार किया और दूसरों को पेंटिंग का प्रशिक्षण देना शुरू किया। बीते 40 साल में वे अबतक 13 हजार से ज्यादा लोगों को पेंटिंग और फाईन आर्ट्स का प्रशिक्षण दे चुकी हैं, जो क्रम अब भी निरंतर जारी है।
अब नाम से शुरू हुआ संस्थान :
सुश्री साधना ढांड की कला के प्रति लगाव और उनसे सीखने वालों की बढ़ती तादात को देखते हुए परिजनों ने प्रयास करते हुए उन्हें समर्पित कर तीन वर्ष पूर्व ही एक संस्थान शुरू किया है, जिसे ‘कला साधना संस्थान’ नाम दिया गया है। इस संस्थान में इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय से मान्यता प्राप्त 2 वर्षीय डिप्लोमा कोर्स कराया जाता है। यह कोर्स कई लोगों के लिए रोजगारमूलक साबित हो रहा है।
आम लोगों से दोगुनी सक्रियता :
सुश्री साधना ढांड के परिजन और उनके परिचित बताते हैं कि सुश्री साधना भले ही चल-फिर नहीं पातीं लेकिन उनकी शारीरिक व मानसिक सक्रियता आम लोगों से दोगुनी नजर आती है। वह सुबह 5 बजे उठ जाती हैं और रात के 12 बजे तक लगातार अपनी कला और रचना कर्म से जुड़े काम करती रहती हैं। इसमें सुबह गार्डनिंग, लैंड स्कैपिंग, बोनसाई पौधे की शेपिंग, स्क्लपचर, फोटोग्राफी और पेंटिंग जैसे काम में रमी रहती हैं। साथ ही अपने स्टूडेंट्स को कला व फाईन आर्ट्स की बारीकियां भी सीखाती रहती हैं।
देशभर में अनेक एग्जीबिशन :
सुश्री साधना ढांड ने अपनी पेंटिंग और फाईन आर्ट्स पर आधारित एग्जीबिशन का आयोजन देशभर के कई शहरों में किया है। इसमें रायपुर, भिलाई, भोपाल (मध्यप्रदेश), अहमदाबाद (गुजरात), जयपुर (राजस्थान), भुवनेश्वर (ओडिशा), नागपुर (महाराष्ट्र), पुणे (महाराष्ट्र) में अनेक एग्जीबिशन शामिल हैं।
कला के क्षेत्र में मिल चुका है राष्ट्रीय सम्मान :
शारीरिक व्याधियों को धता बताकर कला में उत्कृष्टता के आयाम छूने वालीं सुश्री साधना ढांड को कला व फाईन आर्ट्स के क्षेत्र राज्य स्तर पर सम्मान के साथ अनेक राष्ट्रीय पुरस्कार व सम्मान मिल चुके हैं। इसमें सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की ओर वर्ष 2012 में अवार्ड भी शामिल है, जो तत्कालीन राष्ट्रपति के हाथों प्रदान किया गया था।