रायपुर. जन संस्कृति मंच की रायपुर ईकाई द्वारा 31 जुलाई को स्थानीय वृंदावन हॉल में प्रेमचंद जयंती मनाई गई. इस अवसर में उपस्थित लेखकों ने प्रेमचंद के अवदान को बड़ी शिद्दत से याद किया. कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे देश के सुप्रसिद्ध समीक्षक जय प्रकाश ने कहा कि प्रेमचंद यथार्थवादी लेखक थे, लेकिन उन्हें केवल यथार्थवादी लेखन की परम्परा का स्रोत समझना भ्रामक है. वस्तुतः प्रेमचंद भारतीय नवजागरण की महान परंपरा का हिस्सा थे जो भारतेंदु युग में प्रारंभ हुई थी और भारतीय साहित्य में जिसकी अभिव्यक्ति सबसे पहले उड़िया लेखक फ़क़ीरमोहन सेनापति के उपन्यास में दिखाई देती है. प्रेमचंद को इस रूप में देखने पर ही प्रेमचंद को सही संदर्भों में समझा जा सकता है. इस मौके पर कथाकार हरि भटनागर ने अपनी कहानी सेवड़ी रोटियां और जले आलू तथा जया जादवानी ने बर्फ के फूल का वाचन किया.
कथाकार हरि भटनागर की कहानी पर टिप्पणी करते हुए समीक्षक जय प्रकाश ने कहा कि इसमें श्रमजीवी वर्ग का अपने द्वारा उत्पादित वस्तु से ही नहीं, समाज और स्वयं से विलगाव भी मार्मिक ढंग से चित्रित हुआ है. यह कहानी चेखोव जैसे कथाकार की ऊँचाई को छूती है. हरि भटनागर ने इसमें विडम्बना की कथा युक्ति का सृजनात्मक उपयोग किया है. जबकि जया जादवानी की कहानी ‘बर्फ़ के फूल’ प्रेम और नैतिकता से जुड़े सवालों को उठाते हुए स्त्री-पुरुष संबंध के एक अनछुए आयाम को उद्घाटित करती है. ढर्रे में चलते जीवन में प्रेम का अधूरापन और उसकी विडंबना यहाँ प्रकट हुई है. कहानी बताती है कि पितृसत्ता स्त्री को मुक्त नहीं कर सकती. पुरुष होने के नाते इस कहानी के नायक शाश्वत का प्रिविलेज वस्तुतः पितृसत्ता का प्रिविलेज है.
समीक्षक सियाराम शर्मा ने हरि भटनागर की कहानी सेवड़ी रोटियां और जले आलू को मनुष्य के अमानवीयकरण कर दिए जाने की कहानी बताया.उन्होंने कहा कि पूंजीवादी सभ्यता ने जिस बुरे ढंग से मानवीय सारतत्व को निचोड़कर एक यंत्र में तब्दील कर दिया है, कहानी उस यांत्रिकता को खोलकर रख देती है. उन्होंने जया जादवानी की कहानी को सूक्ष्म और संवेदनशील मन की बेजोड़ कहानी बताया. उनकी कहानी प्रेम की आकांक्षा की कहानी है जो कभी भी…किसी भी उम्र में जन्म लेकर विकसित हो सकती है. जया जादवानी की कहानियां मनुष्य को और ज्यादा बेहतर मनुष्य बन जाने के लिए प्रेरित करती है.
जन संस्कृति मंच की रायपुर ईकाई के अध्यक्ष आनंद बहादुर ने कहा कि समूचे देश में प्रेमचंद की जयंती अगर सघनता और उत्साह के साथ और मनाई गई तो यह अनायास नहीं है. गांधी, टैगोर और मुक्तिबोध की तरह ही प्रेमचंद भी आज फासिज्म तथा सामंतवाद के प्रतिरोध के मजबूत आधार के रूप में देखे जा रहे हैं. प्रेमचंद ने अपने समय में ही सामंतवाद और फासिज्म के उन अवशेषों को देख लिया था जो आजादी के बाद भी बचे रह गए थे.
उन्होंने कहा कि हरि भटनागर की कहानी ‘सेवड़ी रोटियां और जले आलू’ प्रेमचंद की कहानी कफन की याद तो दिलाती है लेकिन उससे बिल्कुल भिन्न प्रकृति की कहानी है. कफन जहां एक और मानव के दानव हो जाने की कहानी है, वहीं दूसरी ओर हरि भटनागर की कहानी मनुष्य की मानवीय संवेदना के खो जाने की कहानी है. किस प्रकार सिस्टम मनुष्य को यांत्रिक कर उसे संवेदनाविहीन कर देता है, उससे उसके रंग, स्वाद, सुंदरता आदि के एहसास को छीन लेता है यह इस कहानी का मुख्य कथ्य है. यह कहानी चेखव के ‘डेथ ऑफ ए क्लर्क’ से बहुत कुछ मिलती जुलती रचना है जहां एक क्लर्क व्यवस्था की चक्की में पिसते पिसते इतना यांत्रिक हो जाता है यह आदमी की अस्मिता को खो बैठता है. हरि भटनागर प्रेमचंद की परिपाटी के लेखक न लग कर चेखव की परिपाटी के लेखक लगते हैं.
आनंद बहादुर ने जया जादवानी की कहानी को मानवीय संबंधों, खासकर स्त्री-पुरुष संबंधों की गहरी पड़ताल करने वाली कहानी बताया. उन्होंने कहा कि वे ऐसे अछूते विषयों पर कलम चलाती हैं जिनके बारे में आम आदमी सोचने का दुस्साहस तक नहीं करता है. विवाहेतर प्रेम और खासकर अधेड़ उम्र के प्रेम को उन्होंने अपने कहानियों के दायरे में लाया है एक तरह से कहा जाए तो वे बहुत अधिक खतरा उठा कर लिखने वाली लेखिका हैं. स्त्री-पुरुष के संबंधों को वे बाह्य रूप में नहीं बरततीं की बल्कि बहुत ही गहरी आंतरिक स्तर पर जाकर उनकी विडंबनाओं की पड़ताल करती हैं. खास कर स्त्री मन के हजारों छुपे हुए अवगुनों को खोलती हैं और उन्हें खोलने का उनका जो तरीका है वह भी उनका नितांत व्यक्तिगत है. वे खुद अपने मन में गहरे डूब कर स्त्री के मन की गहराई को तलाशती हैं और वहां से अपने कथानकों को उठाती हैं, इसीलिए वे इतनी सहज और सरल और उनकी भाषा और उनका नैरेटिव टेक्निक प्रभावकारी होता है। बर्फ के फूल कहानी इस बात को मिसाल के तौर पर सामने रखती है कि जया जादवानी क्यों हमारे समय की सबसे महत्वपूर्ण लेखिकाओं में शुमार की जाती हैं.
युवा समीक्षक भुवाल सिंह ने प्रेमचंद: कल आज और कल विषय पर महत्वपूर्ण व्याख्यान दिया. उन्होंने कहा कि प्रेमचंद अंतरात्मा की आवाज पर न्याय का साथ देते थे. अब देश आजाद है. अब संविधान भी है और सुप्रीम कोर्ट भी… लेकिन क्या हम पंच-परमेश्वर जैसी कहानी में उपस्थित रहने वाली न्याय व्यवस्था को देख पा रहे हैं? कार्यक्रम का कुशल संचालन अमित चौहान ने एवं आभार प्रदर्शन जन संस्कृति मंच के सचिव मोहित जायसवाल ने किया. इस मौके पर बड़ी संख्या में साहित्यिकजन मौजूद थे.