रायपुर। साहित्य किसी तरह पराधीनता को पूरी तरह अस्वीकार करता है. भारत की आज़ादी के संघर्ष में जनमानस को मानसिक रूप से तैयार करने और देशवासियों में राष्ट्रीय एकता की भावना जगाने की दृष्टि से साहित्य का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। यह बातें शासकीय खरोरा महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. राजेश दुबे ने मैट्स यूनिवर्सिटी के हिन्दी विभाग द्वारा आजादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत स्वाधीनता और साहित्यः अंतर्संबंध विषय पर आयोजित व्याख्यान में कहीं।
शासकीय खरोरा महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. राजेश दुबे ने कहा कि साहित्य क्रांति नहीं करता लेकिन क्रांति की ज़मीन तैयार करता है। उन्होंने कहा कि हिंदी और छत्तीसगढ़ी के साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से राष्ट्रीय गौरव, सांस्कृतिक एकता, सामाजिक समरसता आदि के भावों सजग अभिव्यक्ति की है। तत्कालीन साहित्य का अध्ययन करते हुए यह स्पष्ट हो जाता है कि स्वतंत्रता के स्वप्नलोक को यथार्थ रूप देने की दिशा में साहित्य का अतुलनीय योगदान रहा है। व्याख्यान के दौरान डॉ. दुबे ने शोधार्थियों तथा विद्यार्थियों के सवालों के जवाब भी दिये। इसके पूर्व हिन्दी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. रेशमा अंसारी ने प्राचार्य डॉ. दुबे का पुस्तक भेंटकर स्वागत किया तथा विभाग की रचनात्मक गतिविधियों से अवगत कराया। व्याख्यान के दौरान विभाग के प्राध्यापकगण, शोधार्थी एवं विद्यार्थीगण उपस्थित थे।