कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय के मनोनीत सदस्य पत्रकार राजकुमार सोनी ने कुलपति बल्देव भाई शर्मा को लिखा तीन पेज का लंबा खत

रायपुर 8 सितम्बर। कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय के मनोनीत सदस्य पत्रकार राजकुमार सोनी ने कुलपति बल्देव भाई शर्मा को लिखा तीन पेज का लंबा खत.

विश्वविद्यालय में चल रही गडबड़ियों, दुविधाओं और समस्याओं को लेकर उठाए कई सवाल.

कार्यपरिषद की बैठक
शीघ्र बुलाने की मांग की.
प्रति,

श्री बल्देव भाई शर्मा ( कुलपति )

कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय

काठाडीह रायपुर.

विषय- विश्वविद्यालय के हित में आवश्यक चर्चा.

महोदय,

कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय के कार्य परिषद में माननीय मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी के द्वारा किए गए मेरे मनोनयन के पश्चात विश्वविद्यालय में चल रही गड़बड़ियों, दुविधाओं और समस्याओं के संबंध में कई बातें मेरे संज्ञान में लाई गई है. कार्यपरिषद का एक जिम्मेदार सदस्य होने के नाते मैं विश्वविद्यालय के शैक्षणिक भवन, प्रशासनिक भवन, छात्रावास सहित पूरे परिसर का निरीक्षण करना चाहूंगा. जिन बातों की जानकारी मुझ तक पहुंची है उसका संक्षिप्त उल्लेख नीचे पत्र में कर रहा हूं.

जब मैं कार्यपरिषद का सदस्य नहीं था तब एक बार काठाडीह स्थित कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय में जाने का अवसर प्राप्त हुआ था. यहां गेट से प्रवेश करते ही ( जहां गार्ड तैनात रहते हैं ) यह लगा था कि मैं खौफनाक फिल्में बनाने वाले रामसे ब्रदर्स की किसी पुरानी हवेली में आ गया हूं. प्रवेश द्वार पर ही सूखते हुए अधोवस्त्रों,आसपास उगी हुई बेतरतीब कटीली झाड़ियों को देखना एक खराब अनुभव से गुजरना था.एक विश्वविद्यालय का हर हिस्सा साफ-सुथरा और व्यवस्थित तो होना ही चाहिए. मुझे बताया गया है कि कमोबेश अब भी वहीं स्थिति कायम है. विश्वविद्यालय की अपेक्षा प्रदेश में स्वामी आत्मानंद के नाम से स्थापित किए गए स्कूल ज्यादा साफ-सुथरे और व्यवस्थित है.

मेरे संज्ञान में यह बात लाई गई है कि सहायक प्राध्यापक प्रबंधन श्री अभिषेक दुबे गत छह साल से राज्य प्रशासनिक अकादमी में ही पदस्थ है. अब तक उनकी वापसी नहीं हो पाई है. इसी तरह दो भृत्य टीकम लाल साहू और सतीश कुमार भी कहीं और तैनात है. एक अनियमित कर्मचारी सौमित्र मुखर्जी राष्ट्रीय उच्चतर अभियान में संलग्न कर दिए गए हैं. नियमित शिक्षकों की कमी से विश्वविद्यालय की पढ़ाई लिखाई की दशा कैसे अच्छी हो सकती है यह सोचा जा सकता है. प्रबंधन विभाग की हालत दयनीय बताई जाती है. मैं विश्वविद्यालय में नियमित शिक्षकों की नियुक्ति के लिए किए गए प्रयासों से भी अवगत होना चाहूंगा. यूजीसी के अनुसार प्रत्येक विभाग में कम से कम सात नियमित अध्यापक तो होने ही चाहिए. विश्वविद्यालय में नियुक्त किए गए कुछ प्राध्यापकों की नियुक्ति के दस्तावेजों को लेकर सवाल उठते रहे हैं. मुझे बताया गया है कि जो भी प्राध्यापक अपने-अपने विभागों के अध्यक्ष है वे बहुत कम कक्षाएं लेते हैं और ज्यादातर समय बिना छुट्टी लिए गायब रहते हैं. एक ओर तो वे वोकेशनल सर्विस का लाभ उठाते हुए ग्रीष्मावकाश तथा अन्य अवकाश का लाभ उठाते हैं, दूसरी ओर प्रत्येक शनिवार को ये प्रशासनिक अधिकारियों को मिलने वाला अवकाश भी लेते हैं. पढ़ाई लिखाई का पूरा जिम्मा अनियमित शिक्षकों के हाथों में है.

उच्च शिक्षा विभाग के आदेश के उपरांत भी अतिथि प्राध्यापकों को कम वेतन दिए जाने की बात भी सामने आई है. अतिथि प्राध्यापकों को समय पर वेतन भी नहीं मिल पा रहा है.

मुझे यह जानकारी भी मिली है कि राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान ( रूसा ) के अंतर्गत विश्वविद्यालय को वर्ष 2015 में 20 करोड़ स्वीकृत किए गए थे. रूसा के अंतर्गत कार्यों को तीन भागों में बांटा गया है- नवीन निर्माण जिसके लिए 35%, पुनर्निर्माण यानी रिनोवेशन के लिए 35%, तथा उपकरण खरीद के लिए 30% राशि का प्रावधान है, यानी 7 + 7 + 6= 20 करोड़। हर किस्त में प्राप्त राशि को इसी अनुपात में विभाजित करके खर्च किया जाना था. लेकिन छत्तीसगढ़ परियोजना कार्यालय के आदेश पर पहले किश्त में प्राप्त समूची राशि को निर्माण कार्य के लिए पीडब्ल्यूडी के खाते में जमा कर दिया.

तत्कालीन विश्वविद्यालय प्रशासन के द्वारा नवीन निर्माण के अंतर्गत 700 सीटर ऑडिटोरियम के निर्माण का प्रपोजल राज्य परियोजना कार्यालय को भेजा गया. इस प्रस्ताव का कोई औचित्य तब होता जब काठाड़ीह में 700 लोगों को इकट्ठा करके कोई कार्यक्रम किया जाता. हो सकता है भविष्य में इसकी उपयोगिता साबित हो, लेकिन जानकारी में यह बात भी लाई गई है कि विश्वविद्यालय की बहुत सारी दूसरी जरूरतें थीं जिन्हें पहले पूरा किया जाना बहुत जरूरी था, जैसे, बड़े स्मार्ट क्लासरूम और लेक्चर हॉल, गर्ल्स हॉस्टल, वीसी बंगला, रजिस्ट्रार बंगला, जिम, खेल मैदान, स्टेडियम, इत्यादि. फैकल्टी के लिए अलग-अलग भवनों को बनाया जाना भी जरूरी है, मगर इन सभी जरूरतों को नजरअंदाज कर समूचे 7 करोड़ की राशि से एक ऐसा ऑडिटोरियम बनाने का निर्णय लिया गया जिसका वास्तव में विश्वविद्यालय के लिए कोई उपयोग नहीं था. यह भी ध्यान में रखने वाली बात है कि सात करोड़ में ऑडिटोरियम का केवल भवन बनना था, अंदर का एकॉस्टिक्स, फ्लोरिंग, सीटिंग अरेंजमेंट, रूफिंग, पीओपी, बिजली इत्यादि सब के लिए अलग से पांच करोड़ अतिरिक्त राशि की जरूरत थी, जिसके बारे में विश्वविद्यालय के पास कोई योजना नहीं थी. लेकिन पूरी तत्परता के साथ प्रपोजल बनवा कर क्षेत्रीय कार्यालय रूसा के सामने प्रस्तुत कर दिया गया. जिस तत्परता के साथ कार्यालय ने उसे अनुमोदित कर बनाने की स्वीकृति दी, पीडब्ल्यूडी ने उसी तत्परता के साथ उसकी निविदा की. ठेकेदार ने भी जिस तत्परता के साथ उसे लेकर भी कई तरह की बातें कहीं गई है. बताया गया है कि आज यह खोखला भवन विश्वविद्यालय के प्रशासनिक भवन के ठीक पीछे एक बहुत बड़े भुतहा स्ट्रक्चर के रूप में मुँह चिढ़ा आ रहा है, और धीरे-धीरे जर्जर होने की प्रक्रिया में है, क्योंकि इसके भीतर के कंस्ट्रक्शन की राशि का कहीं पता नहीं है. कहा जा सकता है कि नवीन निर्माण के रूसा के 7 करोड़ की समूची राशि को विश्वविद्यालय प्रशासन ने जानबूझकर बर्बाद कर दिया और इसके द्वारा विश्वविद्यालय को एक ऐसी चोट पहुंचाई है जिससे यह विश्वविद्यालय कभी उबर नहीं पाएगा. इसके लिए किसकी जिम्मेदारी तय की जाएगी ? क्या विश्वविद्यालय प्रशासन ने किसी को दोषी माना है ? क्या अब तक किसी के खिलाफ कोई एफआईआर की गई है?

रूसा के अंतर्गत रिनोवेशन कामों को लेकर भी कई बातें सामने आई है. रिनोवेशन के लिए विश्वविद्यालय द्वारा जो प्रस्ताव बनवाए गए उनके तहत विश्वविद्यालय के भवन के साज सज्जा में ही करोड़ों रुपए खर्च किए गए. विश्वविद्यालय का भवन जो बिल्कुल नया ही था, उसके नए टाइल्स को निकालकर, उनकी जगह मोजाइक, ग्रेनाइट और संगमरमर लगाने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया जिसका बिना किसी तरह की समीक्षा के रूसा कार्यालय द्वारा अनुमोदन कर दिया गया. रिनोवेशन का कार्य जिस किसी भी ठेकेदार को दिया गया उसने पूरे विश्वविद्यालय में तोड़फोड़ कर बहुत सारे उपकरणों इत्यादि को तहस-नहस कर दिया है. मेरे संज्ञान में यह बात भी आई है कि रिनोवेशन का कार्य बहुत ही निम्न कोटि का हुआ है.

मुझे यह अवगत हुआ है कि उपकरण खरीदी के लिए जो 6 करोड़ निर्धारित थे उनके लिए तत्कालीन प्रशासन ने बिना विभागों से प्रस्ताव मंगवाए अपनी मनमर्जी से बहुत अधिक कीमत के कैमरा और अन्य उपकरण खरीदने का प्रस्ताव भेजा था. इस प्रस्ताव में लगभग तीन करोड़ रुपए का प्रस्ताव तो केवल समूचे विश्वविद्यालय के 65 एकड़ परिसर में सोलर पैनल लगाए जाने का था. प्रस्ताव में इतनी खामियां थी कि खुद विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्षों ने ऐसी चीजें जो बिना उनके परामर्श के मंगाई गई थी खरीदे जाने पर स्वीकार करने से इनकार कर दिया. तब से अब तक एक रुपए की भी उपकरण खरीदी नहीं हो सकी है, जबकि विश्वविद्यालय के सारे कंप्यूटर, फर्नीचर और उपकरण दस बारह साल पुराने हैं और विश्वविद्यालय उपकरणों के अभाव से ग्रस्त है.

मुझे बताया गया है कि विश्वविद्यालय में वाई-फाई की सुविधा तो है, लेकिन नेटवर्क के अभाव में उसका उपयोग सीमित है. ग्रंथालय में नवाचार और नवविचार को बढ़ावा देने वाली पुस्तकें भी उपलब्ध नहीं है. विश्वविद्यालय का वार्षिक प्रतिवेदन तो प्रकाशित होता है, लेकिन छात्रों के सृजनात्मक लेखन को बढ़ावा देने के लिए कोई मासिक पत्रिका नहीं निकाली जाती.

पीएचडी परीक्षा किसी विश्वविद्यालय की सबसे बड़ी परीक्षा होती है, जिसके आधार पर अध्यापकों की नियुक्ति की जाती है. यूजीसी के नवीनतम अध्यादेश के अनुसार बिना पीएचडी किए किसी की नियुक्ति प्राध्यापक पद पर नहीं हो सकती है. इसलिए यह बहुत जरूरी था कि पीएचडी की परीक्षा निष्पक्ष तरीके से आयोजित की जाए. ऐसा लगता है कि कुशाभाऊ ठाकरे विश्वविद्यालय में इसका ठीक उल्टा हुआ है.

मेरी जानकारी में यह बात आई है कि इस 10 मार्च को लम्बे अर्से बाद विश्वविद्यालय पीएचडी प्रवेश परीक्षा आयोजित की गई. उसका आयोजन गोपनीय विभाग के द्वारा ( जो किसी भी विश्वविद्यालय की समस्त परीक्षाओं का आयोजन के लिए जिम्मेदार होता है ) न करवाकर जनसंचार विभाग के विभागाध्यक्ष के हाथ में पूरी तरह दे दिया गया. यह शायद विश्वविद्यालयों के इतिहास में पहली बार हुआ होगा कि किसी एक व्यक्ति ने पीएचडी की परीक्षा के प्रश्न सेट कराना, परीक्षा का आयोजन कराना, कॉपियां बंटवाना, कॉपियों को जंचवाना, रिजल्ट घोषित करना तथा बाद में परिणाम के आधार पर छात्रों का पंजीयन करके उनकी रिसर्च पीएचडी करवाना, ये सारे कार्य कोई एक ही व्यक्ति के द्वारा किए जाए. इतनी सुविधा मिलने के बाद तो कोई भी व्यक्ति सारी सीटें अपने चहेतों को आसानी से दे दे सकता है, ऐसी स्थिति में निष्पक्षता की कैसे उम्मीद की जा सकती है?

और भी बहुत सारे बिंदु ऐसे हैं जिस पर चर्चा जरूरी है. आपसे विनम्र अनुरोध हैं कि शीघ्र-अतिशीघ्र कार्यपरिषद की बैठक आयोजित करने का कष्ट करें.

प्रतिलिपि
कुलसचिव
कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विवि

भवदीय
राजकुमार सोनी
मनोनीत सदस्य
कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं
जनसंचार विश्वविद्यालय

9826895207

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