रायपुर 20 सितंबर 2000/ बालोद जिले के झलमला स्थित माँ गंगा मैया मंदिर ऐतिहासिक महत्व वाला धार्मिक स्थल है। इस मंदिर का एक गौरवशाली और बहुत ही चमत्कारी इतिहास है। मूल रूप से गंगा मैया मंदिर का निर्माण एक स्थानीय मछुआरे द्वारा एक छोटी सी झोपड़ी के रूप में किया गया था।
एक स्थानीय धार्मिक मान्यता गंगा मैया मंदिर की उत्पत्ति से संबंधित है। प्रारंभ में मंदिर एक छोटी सी झोपड़ी के रूप में बनाया गया था।
जिसे भक्तों द्वारा दिए गए दान पश्चात एक विस्तृत मंदिर परिसर के रूप में स्थापित करने में मदद मिली।
माँ गंगा मैय्या मंदिर से जुड़ी एक प्राचीन कथा है की अंग्रेज शासन काल में आज से करीब 125 साल पहले जिले की जीवन दायिनी तांदुला नदी के नहर का निर्माण कार्य चल रहा था, उस दौरान झलमला की आबादी महज 100 के लगभग थी, जहां सोमवार के दिन ही यहां का बड़ा बाजार लगता था। जहां दूर-दराज से पशुओं के विशाल समूह के साथ बंजारे आया करते थे। उस दौरान पशुओं की संख्या अधिक होने के कारण पानी की कमी महसूस की जाती थी। पानी की कमी को पूरा करने के लिए बांधा तालाब नामक एक तालाब की खुदाई कराई गई। मां गंगा मैय्या के प्रादुर्भाव की कहानी इसी तालाब से शुरू होती है।
किवदंती अनुसार एक दिन ग्राम सिवनी का एक मछुआरा मछली पकड़ने के लिए इस तालाब में गया, लेकिन जाल में मछली की जगह एक पत्थर की प्रतिमा फंस गई, लेकिन केंवट ने अज्ञानतावश उसे साधारण पत्थर समझ कर फिर से तालाब में डाल दिया। इस प्रक्रिया के कई बार पुनरावृत्ति से परेशान होकर केवट जाल लेकर घर चला गया। केवट के जाल में बार-बार फंसने के बाद भी केवट ने मूर्ति को साधारण पत्थर समझ कर तालाब में ही फेंक दिया। इसके बाद देवी ने उसी गांव के गोंड़ जाति के बैगा को स्वप्न में आकर कहा कि मैं जल के अंदर पड़ी हूं। मुझे जल से निकालकर मेरी प्राण-प्रतिष्ठा करवाओ।
स्वप्न में आने के बाद प्रतिमा को निकाला बाहर
स्वप्न की सत्यता को जानने के लिए तत्कालीन मालगुजार छवि प्रसाद तिवारी, केंवट तथा गांव के अन्य प्रमुख को साथ लेकर बैगा तालाब पहुंचा, उसके बाद केंवट द्वारा जाल फेंके जाने पर वही प्रतिमा फिर जाल में फंसी। प्रतिमा को बाहर निकाला गया, उसके बाद देवी के आदेशानुसार तिवारी ने अपने संरक्षण में प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा करवाई। देवी प्रतिमा का जल से निकलने के कारण माँ गंगा मैय्या के नाम से जानी जाने लगी।