सम्मेलन को सफल करो…आंदोलन को सफल करो…
लोकतंत्र को ज़िंदा देखने वाले हर शख्स ने कभी न कभी यह नारा अवश्य लगाया होगा.
सभी साथियों के भीतर यह नारा गूंज रहा था…और लीजिए सबकी अथक मेहनत से जन संस्कृति मंच का 16 वां राष्ट्रीय सम्मेलन जबरदस्त ढंग से सफल हो गया.
अब जब सम्मेलन की सफलता की गूंज चौतरफा हो रही है तब बहुत से लोग यह जानने के इच्छुक हैं कि यह सब कैसे संभव हुआ ?
सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफार्म पर कई तरह की टिप्पणियां देखने को मिल रही है. कोई लिख रहा है कि सम्मेलन ने एक लकीर खींच दी है.एक अलग तरह का मापदंड तय कर दिया है तो कोई यह कहने से भी नहीं चूक रहा है कि जसम के साथी सफलता को ज्यादा दिनों तक पचा नहीं पाएंगे. आपकी सहमति / असहमति सबका सम्मान है.
यह कहना थोड़ा जरूरी होगा कि जसम साहित्यकारों, लेखकों और संस्कृतिकर्मियों का महत्वपूर्ण संगठन है. इस संगठन से जो भी साथी जुड़े हुए हैं वे सभी जमीनी हैं.जमीन से जुड़े साथी कंकड़-पत्थर सब कुछ पचा लेते हैं.
रही बात लकीर खींचने की तो कोई एक लकीर बनती ही इसलिए है कि दूसरी लकीर खींची जाय.जसम में एक से बढ़कर एक ऊर्जावान साथी है. हम सबको पूरा भरोसा है कि आने वाले दिनों में लकीर के बाजू से कोई दूसरी बड़ी लकीर अवश्य खींची जाएगी.
जसम का यह सम्मेलन देश के कोने-कोने में मौजूद प्रतिबद्ध साथियों की कड़ी मेहनत से सफल हो पाया है.
किसी भी बड़े आयोजन के लिए शायद थोड़े और ज्यादा पैसों की जरूरत होती है, लेकिन सिर्फ़ पैसों से ही कोई आयोजन सफल नहीं हो सकता. एक विचारवान आयोजन में समर्पण और कुछ कर गुज़रने का इरादा महत्वपूर्ण होता है.
मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि छत्तीसगढ़ जसम में कुछ नया और बेहतर कर गुज़रने का जज्बा रखने वाले साथियों की एक जबरदस्त टीम है. हमारा एक ग्रुप और है जिसका नाम है-दोस्ती ज़िंदाबाद. इस ग्रुप से जुड़े सभी सदस्य अपने काम को बेहतर ढंग से अंजाम देने वाले साथी है.बाहर से आने वाले तमाम अतिथियों ने चाय, नाश्ते और भोजन व्यवस्था की खूब सराहना की है. इस व्यवस्था को दोस्ती ज़िंदाबाद ग्रुप से जुड़े साथियों ने ही संभाल रखा था.
हमें लेखकों / संस्कृतिकर्मियों ने यथासंभव आर्थिक सहयोग तो दिया ही. बहुत से मित्रों ने चावल, आटे, दाल, तेल, बेसन, पोहे, चने, शक्कर का सहयोग भी प्रदान किया. यह सहयोग भी हमने उतना ही लिया जितनी आवश्यकता थीं. एक मित्र अतिथियों को अंडाकरी खिलवाना चाहते थे तो एक मित्र की दिली इच्छा यह भी थीं कि लेखकों और संस्कृतिकर्मियों को चिकनकरी भी खाना चाहिए. वैसे भी फ़ासिज्म को बढ़ावा देने वाले लंपट हर दूसरे दिन यह तय करते रहे हैं कि कौन क्या खाएगा और क्या नहीं…?
तब हमने तय किया कि जो अच्छा लगेगा वह खाया जाएगा.
सम्मेलन में कुछ गाड़ियों की आवश्यकता थीं. यह कमी भी हमारे मित्रों ने पूरी कर दी. कुछ मित्र ऐसे भी जुड़े जो तीन-चार दिनों तक अपनी गाड़ियां हमें सौंपकर खुद स्कूटी या अन्य साधनों तक कार्यक्रम स्थल तक पहुंचते रहे.
जोरा स्थित पंजाब केसरी भवन में जहां सम्मेलन हुआ वह बेहद भव्य था. हॉल के अलावा ठहरने के पूरे 38 कमरे सर्वसुविधायुक्त थे. जब हम इस हॉल को बुक करने गए तब हमें लगा था कि शायद हमारा बजट बिगड़ जाएगा… लेकिन लिखने-पढ़ने में रुचि रखने वाले चेयरमैन जवाहर खन्ना ने हॉल के किराए में भारी-भरकम छूट देकर चौका दिया. उन्होंने हमें अतिरिक्त कुर्सियों की सुविधा भी प्रदान की.
सम्मेलन में पांच प्रकाशकों-नवारूण, समकालीन जनमत, वैभव प्रकाशन, एकलव्य प्रकाशन व सेतु प्रकाशन द्वारा पुस्तक प्रदर्शनी लगायी गई.
एक अच्छी बात यह रही कि किताबों की खूब बिक्री भी हुई.
कवि, लेखक एवं जन संस्कृति मंच के संस्थापक सदस्य अजय कुमार के चित्रों व उनके द्वारा लिखे गए पोस्टकार्ड्स की सुंदर प्रदर्शनी मुंबई से आए चित्रकार और जाने माने सिनेमोटोग्राफ़र अपल ने लगायी जो सबके आकर्षण का केंद्र थी. संभावना कला मंच गाजीपुर से राजीव कुमार गुप्त, सुधीर सिंह और राहुल यादव ने हाल में दिवंगत युवा चित्रकार राकेश दिवाकर की पेंटिंग और पोस्टर की प्रदर्शनी लगायी. कोलकाता से आए चर्चित युवा चित्रकार अनुपम राय और लाबनी ने अपने पोस्टर और चित्रों से पूरे आयोजन को एक अलग तेवर दिया.
रायपुर के प्रसिद्ध चित्रकार अरुण काठोठे के कविता पोस्टर को भी खूब पसंद किया गया. पूरे आयोजन स्थल को इन चित्रकारों ने कला ग्राम में बदल दिया था.
इस पोस्ट के साथ एक चित्र शेयर कर रहा हूं. यह तस्वीर है जसम के वरिष्ठ साथी और समकालीन जनमत के संपादक केके पांडेय भाई की. केके वहीं शख्स है जिन्होंने जसम के फाउंडर महेश्वर जी को अपनी एक किडनी देने के लिए तैयार हो गए थे. पता नहीं जब यह बात मैं लिख रहा हूं तब न जाने कितने साथी नाराज होंगे,लेकिन यह सच है. संगठन और साथियों के लिए मर मिटना कोई केके भाई से सीखे. मेरे दिल में उनके लिए बड़ा सम्मान है. यह सम्मान हमेशा कायम रहने वाला है.
चित्र में साफ दिख रहा है कि केके भाई जमीन पर एक गद्दा बिछाकर सो रहे है. गद्दा बिछाकर सोना कोई बड़ी बात नहीं है. महत्वपूर्ण बात यह है कि केके भाई ने पंजाब केसरी भवन के ठीक गेट के पास खुले में अपना बिछौना लगा दिया था. वजह यह थी कि उन्हें भवन छोड़ने वाले साथियों से चॉबी कलेक्ट करनी थीं. 9 अक्टूबर की रात काफी देर से सम्मेलन का समापन हो पाया था. केके भाई गेट के बाहर इसलिए सो
गए ताकि अपने-अपने ठिकानों पर लौटकर जाने वाले साथी उन्हें चॉबी सौंपकर जा सकें. यह सब वे तब कर रहे जब उनका फ्रैक्चर हाथ ठीक नहीं हुआ था.
घर पर बैठकर फ़ासीवाद से लड़ने वाले मित्र यह बात कभी नहीं समझ पाएंगे कि सम्मेलन कैसे सफल होता है ?
बस इतना कहूंगा कि जसम के 16 वें राष्ट्रीय सम्मेलन की सफलता प्रतिबद्ध साथियों के जुनून का परिणाम है.