रायपुर। गजानन माधव मुक्तिबोध और शरच्चंद्र माधव मुक्तिबोध दो भाई और दोनो चोटी के साहित्यकार, एक हिन्दी भाषा में तो दूसरे मराठी में लिखने वाले। गजानन माधव मुक्तिबोध का लगभग सारा लेखन मराठी में अनुवाद हुआ है और उनकी हर विधा को लेकर लिखा गया है और चर्चा हुई है, लेकिन शरच्चंद्र के लेखन का हिंदी में अनुवाद नहीं हुआ और न ही उन पर इतनी चर्चा हुई। यह बात श्रीपाद भालचंद्र जोशी ने पं.रविशंकर विवि के कला भवन में आयोजित दो दिवसीय मुक्तिबोध प्रसंग के आखिरी दिन आयोजित सत्र ‘मुक्तिबोध और मुक्तिबोध: गजानन माधव और शरच्चंद्र माधव’ के दौरान कही। जोशी दोनो भाइयों के जीवन व साहित्य पर प्रकाश डालते हुए बताया कि दोनो में गहन विचारशीलता, राजनीतिक चेतना, प्रगतिशीलता के मूल्य बोध थे। गढ़े गये स्थापत्य को ध्वस्त करने का काम गजानन मुक्तिबोध हिंदी में करते हैं तो शरच्चंद्र मराठी में करते हैं ।
प्रफुल्ल शिलेदार ने मुक्तिबोध साहित्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि दोनो भाइयों ने मनुष्यता को केंद्र में रखकर साहित्य को रचा। कविता का मूल्यांकन का आधार मानवीयता को रखा।
प्रदीप मुक्तिबोध ने दोनो भाइयों गजानन माधव और शरच्चंद्र मुक्तिबोध के पारिवारिक जीवन व वैचारिक संबंधों पर आत्मीय प्रसंगों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि गजानन जी को हम ताऊ कहते थे, वे जब नागपुर आते थे तो दोनों भाइयों में पारिवारिक जीवन पर बहुत कम बात होती थी। इसके इतर साहित्य, समाज, संस्कृति आदि विषयों को लेकर घंटों बात होती थी। सत्र की अध्यक्षता कर रहे दिवाकर मुक्तिबोध ने कहा कि दोनो भाइयों के साहित्यिक अवदान पर समय-समय पर चर्चा होती रही है लेकिन मुक्तिबोध के पत्रकारीय योगदान पर भी बात की जानी चाहिए।
उन्होंने मुक्तिबोध को लेकर कुछ अंशों को पढ़कर सुनाया।
दूसरे सत्र कविता समय, शून्य व अन्य कविताओं का मंचन में सूत्रधार नाट्य समूह के विभाष उपाध्याय व साथियों द्वारा मुक्तिबोध की कविताओं पर नाट्य मंचन किया गया।
आखिरी सत्र ‘अंधेरे में रोशनी मुक्तिबोध’ में वक्ता के रूप में बसंत त्रिपाठी ने कहा कि मुक्तिबोध की कहानियों पर जितनी चर्चा होनी थी, चार-पांच कहानियों को छोड़ दें तो उतनी नहीं हुई। मुक्तिबोध की कहानी का पात्र संवेदनशील है। उनकी कहानियों में छटपटाहट है, वह मै के परिवर्तन की बात लगातार उठाते हैं। कहानियों के अंशों को पढ़कर त्रिपाठी कहते हैं कि मुक्तिबोध पूंजीवाद की विद्रूपता को लगातार दिखाते हैं। एक पारिवारिक व्यक्ति के ईमानदारी भरे संघर्ष को मुक्तिबोध पैनी दृष्टि के साथ रेखांकित करते हैं। पंकज श्रीवास्तव ने मुक्तिबोध की फेंटेसी को लेकर बात रखते हुए कहा कि मेरा अनुभव है कि मुक्तिबोध की कविताओं में सम्मोहन है, इसलिए कभी-कभी उनकी कविता समझ न आने पर भी पढ़ते हैं। ऐसा लगता वह कहीं न कहीं हमारे अवचेतन में है। मुक्तिबोध द्वारा प्रयोग किये गये बिंब, प्रतीक सामूहिक अवचेतना से लिये गये हैं। वह बार-बार ज्ञानात्मक संवेदना की बात करते हैं। कामिनी ने कहा कि जैसा समय चल रहा है ऐसे में बार-बार मुक्तिबोध को याद करना जरूरी है। उन्होने कहा कि मुक्तिबोध ज्ञान और कर्म की एकता पर बल देते हैं। भुवाल सिंह ठाकुर ने कहा कि वर्तमान समय में अच्छे कवि हैं लेकिन सच्चे कवि बहुत कम हैं। मुक्तिबोध सच्चे और खरे कवि हैं। अगर हमें मुक्तिबोध को पढ़ना है तो उनका लिखा मेरी मां ने मुझे प्रेमचंद का भक्त बनाया पढ़ना चाहिए। भुवाल ने मुक्तिबोध के बचपन से लेकर, उनकी रचनात्मक यात्रा पर प्रकाश डालते कहा कि मुक्तिबोध के लिए गरबीली गरीबी, स्वाभिमान और ईमान सिर्फ दिमागी लफ्फाजी नहीं था बल्कि जीवन मूल्य थे। इस सत्र की अध्यक्षता करते हुए विवि के कुलपति केशरीलाल वर्मा ने कहा कि साहित्य अकादमी ने हमारे भाषा अध्ययनशाला के साथ मिलकर जिस तरह से गहन और गंभीर विचारशील आयोजन मुक्तिबोध प्रसंग अयोजित किया है, यह विवि के लिये गौरवान्वित करने वाली बात है।