राजेश्वर सक्सेना के लेखकीय, वैचारिक, सरोकारों व संस्मरणों पर हुई चर्चा

बिलासपुर। राजेश्वर सक्सेना का चिंतन यथास्थितवाद को तोड़ने और वैज्ञानिक दृष्टिकोंण विकसित करते हुए ज्ञान मीमांसा का माहौल तैयार करता है। उनकी वैचारिकी असमानता और पूंजीवाद के खिलाफ है। यह बात स्तंभ लेखक, आलोचक व संस्कृतिकर्मी रविभूषण ने साहित्य अकादमी छत्तीसगढ़ द्वारा आयोजित दो दिवसीय वैचारिक आयोजन ‘राजेश्वर सक्सेना एकाग्र’ के प्रथम दिन विमर्श सत्र ‘राजेश्वर सक्सेना की वैचारिकी’ पर बोलते हुए कही। भूषण ने कहा कि राजेश्वर सक्सेना का शरीर भले ही भील चेयर पर है, लेकिन उनका मस्तिष्क गतिशील है और उनकी तरह का बौद्धिक हस्ताक्षेप दुर्लभ है। उनके लिए सफलता का नहीं सार्थकता का महत्व है। भूषण ने कहा कि सक्सेना जी का विषय व्यापक है। उनके निर्माण की वैचारिकी में दर्शन, इतिहास, विज्ञान, मार्क्सवाद, द्वंद्वात्मक भौतिकवाद है। वह हमारे समय के सबसे महत्वपूर्ण विचारक व चिंतक हैं। साहित्यकार अमरेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि आज के समय में इस कार्यक्रम की उपयोगिता बढ़ जाती है। 85 वर्षीय सक्सेना समकालीन बिंदुओं पर तर्कसंगत राह दिखाते हैं। वह विज्ञान और तकनीकी के बीच के अंतर को पकड़ते हैं। विज्ञान और तकनीक का विभेद ही मनुष्य के तर्कशील होने का माद्दा रखता है। तर्क और बुद्धि को बाधित करते हुए ऐसा खास वातावरण निर्मित किया जाता है कि अतार्किकता का माहौल बनता चला जाता है। राजेश्वर जी इसके प्रति आगाह करते हैं।
वरिष्ठ रंगकर्मी व सामाजिक कार्यकर्ता मुमताज भारती ने कहा कि राजेश्वर सक्सेना की वैचारिकी द्वंदवाद पर आधारित है। उन्मुक्त बाजार व्यवस्था जो मनुष्य के खिलाफ है, उसका आलोचना करते हुए, पूंजीवाद को नव उपनिवेशवाद कहते हैं। सक्सेना की वैचारिकी का प्रभाव बौद्धिक जगत में व्यापक रूप से पड़ा है।
द्वतीय वैचारिक सत्र ‘ आधुनिकता, उत्तर आधुनिकता और राजेश्वर सक्सेना’ पर आधुनिकता से उत्तर आधुनिकता पर बात करते हुए अच्युतनांद मिश्र ने कहा कि उत्तर आधुनिकता, आधुनिकता से ही आती है। राजेश्वर सक्सेना कहते हैं कि उत्तर आधुनिकता दरअसल आधुनिकता से निर्मित होती है। मिश्र कहते हैं कि प्रबोधन ने दुनिया को बदला, जिससे स्वतंत्रता, समानता, न्याय के विचार पैदा हुए। राजेश्वर सक्सेना ने 1945 के बाद की स्थिति पर ज्यादा ध्यान दिया। सक्सेना जिस द्वंद्वात्मक भोतिकवाद की बात करते हैं, उस पर हमला इसी समय शुरू हुआ। 1945 के बाद दुनिया में वर्चस्व की संस्कृति का जोर शुरू हुआ। भाषावादी करण ने सारे अंतर्विरोधों को खत्म किया। डिजिटलीकरण ने मनुष्य की चेतना पर हमला हुआ। तकनीकी ने मनुष्य के बोध को बदल दिया। राजेश्वर सक्सेना ने इन्ही विषयों पर बात की है। सवाल उठाने से उत्तर भले न मिले लेकिन मनुष्य के भीतर का भय और अबूझपन दूर होता है।
अमित राय ने राजेश्वर सक्सेना के हवाले से कहा कि तकनीक विज्ञान को खत्म करने का काम कर रही है। इसके लिए अमेरिका जिम्मेदार है। उसकी नीतियां शोषण की हैं। उसका निर्माण ही लूट के साथ हुआ है। दरअसल वह राज्य और पूंजी का गठजोड़ है। लाभ की नीति ने चेतना को खत्म करने का काम किया है। इस बात को समझने की जरूरत है। भागवत प्रसाद ने कहा कि डॉ सक्सेना के लेखन में यह बात साफ है कि वह यूरोप की आधुनिकता के साथ बर्बरता भी जारी है। प्रबोधन काल के मूल्य खंडित हो रहे हैं। सक्सेना जी मनुष्य की मनुष्यता पर हो रहे हमलों से लगातार आगाह करते हैं और वह किसी भी विचार की जड़ता में नहीं फंसते बल्कि नवीन चेतना पैदा करते हैं।
‘राजेश्वर सक्सेना और हमारा समय’ विषय को संबोधित करते हुए कवि, पत्रकार नथमल शर्मा ने कहा कि हमारे समय की भयावहता को सक्सेना सर पहले ही परचान गये थे। किसान नेता नंद कुमार कश्यप ने कहा कि
सामाजिक कार्यकर्ता व लेखक विनीत तिवारी ने कहा कि हमारे समय के पहले भी भयावह समय गुजर चुके हैं, इसलिए हमें आशावान रहना चाहिए और संघर्ष का माद्दा रखना चाहिए।
लेखक अजय चंद्रवंशी ने कहा कि सक्सेना सर मार्क्सवाद को भी रचनात्मक नजरिये से देखते हैं।

शाम के सत्र में राजेश्वर सक्सेना का नागरिक अभिनंदन समारोह रखा गया। इस समारोह में शहर व बाहर से आये प्रबुद्धजनों द्वारा राजेश्वर सक्सेना का बुके देकर अभिनंदन करने के साथ ही मुदित मिश्र, आदित्य सोनी

                               

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