रायपुर. छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद की साहित्य अकादमी द्वारा शानी फाउंडेशन के सहयोग से देश के चर्चित रचनाकार गुलशेर खां ‘शानी’ जी पर केंद्रित 2 दिवसीय कार्यक्रमों का शुभारंभ आज कन्वेंशन हाल में शुरू हुआ।
हमारे समय में शानी” शीर्षक के अंतर्गत उनके अवदान पर बातचीत, वक्तव्य और रचना पाठ से शुरुआत हुई।
शानी पर केद्रित चित्र व पोस्टर प्रदर्शनी का उद्घाटन मुख्यमंत्री के सलाहकार विनोद वर्मा द्वारा किया गया ।
उद्घाटन सत्र में उर्दू एवं हिंदी साहित्य के अध्येता तथा शानी रचनावली का संपादन करने वाले जानकीप्रसाद शर्मा ने भोपाल में शानी जी से अपनी पहली मुलाकात और कॉलेज प्रोफेसर की संविदा नियुक्ति छोड़ कर दिल्ली जाने का प्रसंग सुनाया।
शानी जी के व्यक्तित्व और रचनाओं पर कुछ कहना हो तो कहा जायेगा कि वे मानवीय करुणा के इंसानी मोहब्बत की प्रस्तुति के प्रतीक रचनाकार हैं।
वस्तुतः आज का समय प्रेम की इमारतों को गिराने वालों के वर्चस्व का समय है ऐसे में निराशा की बजाय ये ध्यान रखना जरूरी है कि चूंकि हर रात के बाद रात नही होती है, इसी दिन के इंतजार में आज शानी को याद करना जरूरी है।
जिन रचनाओं के केंद्र में मनुष्य है उसमें मनुष्य की बेहतरी की चिंता है, मानवीय करुणा और जो हालात में दुख हैं वे रचनाओं में व्यक्त हो रही हैं ये सभी प्रेमचंद की परंपरा के लेखक हैं ठीक यही सब शानी जी की रचनाओं में हैं।
प्रसिद्ध कथाकार शशांक ने अपने आकाशवाणी जगदलपुर में कामकाज के दिनों को शानी जी के संदर्भो के साथ याद किया। बाद के दिनों में शानी जी साहित्य अकादमी के हिंदी संपादक रहते हुए भी लेखकों से लेखक की तरह मिलते और प्रोत्साहित करते थे
कवि तथा संपादक विजय गुप्त
ने शानी की कविताओं का जिक्र
करते हुए उनकी संवेदनापूर्ण रचनाओं को एक स्तरीय कवि की रचना सिद्ध किया। शानी जीवन भर मुर्दो की बस्ती बनते जा रहे हमारी बस्तियों को जगाने का काम करते रहे, अपने मुस्लिम हो कर हिंदी में लेखन का उन्हें हमेशा गौरवबोध रहा। कालाजल के बाद आधागांव ( लेखक राही मासूम रजा) के प्रकाशन का उन्हें अच्छा अहसास बना रहता।
दिल्ली से आये फीरोज शानी (पुत्र) ने अपने वक्तव्य में शानी जी के व्यक्तित्व के अनछुए पहलुओं को उजागर किया । आठवीं कक्षा में उन्होंने लिखा था
- अंधेरा बहुत घना था, सख्त अंधेरा था, इतना ज्यादा कि लोग आपस में टकरा रहे थे।
अफसोस यह है कि शानी के बचपन के समय का अंधेरा आज और भी बढ़ गया है। शानी वस्तुतः अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ दुश्मन होता है।
लेखक अपने परिवेश से से कथानक और पात्र चुने तब ही वह कालजयी रचनाएं लिख सकता है।
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद शानी जी पर केंद्रित यह पहला बड़ा कार्यक्रम हुआ, जिसमें ” सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार रमाकांत श्रीवास्तव जी ने किया तथा सारगर्भित शब्दों में अपनी बात रखी। इस सत्र में छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद के संयुक्त सचिव व संचालक संस्कृति विवेक आचार्य जी ने उपस्थित लेखकों , संस्कृति कर्मियों के प्रति आभार व्यक्त किया गया।
दूसरे सत्र में शानी जी के पात्रों पर चर्चा करने के लिये मनोज रूपड़ा, वैभव सिंह और नीरज खरे मौजूद थे। इस सत्र का संचालन कर रहे वरिष्ठ पत्रकार राजकुमार सोनी ने शानी जी के लेखन को अप्रतिम बताया। मनोज रूपड़ा ने शानी के लेखन काल की चर्चा करते हुए तत्कालीन हालातों का ब्यौरा दिया। नीरज खरे का कहना था
शानी समाज को हिन्दू मुस्लिम की बजाय भारतीय समाज के रूप में देखना चाहते थे।
वैभव सिंह ने भारतीय परिवेश की कहानियों में सामाजिक जटिलताओं की परख और छानबीन करने में सक्षम लेखक ही सफल हो सकता है, जो कि शानी के लेखन में है। शानी के समय में वे इब्ने शफी के जासूसी उपन्यास पढ़ते थे जब से शानी का लेखन पढ़ा वे उनके मुरीद हो गए। दरअसल देश में 1990 के बाद रचनाकारों के मज़हब और जातियों पर विमर्श शुरू हो गया, उन्हें बांटने की कोशिशें शुरू हो गयी। जिससे वस्तुतः पाठकों की संवेदनाओं का बड़ा नुकसान हुआ।
तीसरे सत्र में संचालन करते हुए एक्टिविस्ट तथा पत्रकार पीसी रथ ने शानी के बस्तर से जुड़े संदर्भो को याद किया, जगदलपुर की पुरानी लाइब्रेरी में उनके साथ पढ़ने वाले इस्माइल भाई के संस्मरणों को याद किया । सत्र की शुरुआत में आगरा से आये अंग्रेजी के प्राध्यापक प्रियम अंकित ने कालाजल को आम भारतीय मुस्लिम समाज की जिजीविषा और स्थितियों को उसी परिवेश के साथ प्रस्तुत करने वाला उपन्यास बताया।
विजय गुप्त जी ने अध्यक्षीय वक्तव्य में शानी जी की रचनाओं के आधार पर कहा कि करुणा और वीभत्सता एक साथ आती है तो कितनी अधिक पीड़ा दे सकती है ये कालाजल की सड़ांध में देख सकते हैं ये आज के समय में हमारे देश के हालातों से भी स्पष्ट हो रहा है।
तीसरे सत्र में शानी जी के काला जल उपन्यास पर चर्चा में रमाकांत श्रीवास्तव जी ने बताया कि शानी के लेखन में एक बैचेनी निरंतर दिखाई देती है। जो लेखक अपने समय को नही समझता वो कालजयी लेखक कभी नही हो सकता, शानी ने पूरी तन्मयता से अपने समय को अपने लेखन में चित्रित किया है।
जगदलपुर से आये राजेश कुमार सेठिया ने शानी के स्कूली जीवन से जुड़ी बातों को बताते हुए उनके पात्रों की कशमकश को उल्लेखित किया , किस तरह मोहसिन हतभागी बाहुबली साबित होता है कालाजल उपन्यास में। शानी की प्रारंभिक रचना जो कस्तूरी के नाम से प्रकाशित हुई थी बाद में सांप और सीढ़ी के नाम से उपन्यास के रूप में प्रकाशित हुआ।
चौथे सत्र में प्रशांत टंडन की अध्यक्षता में शानी जी के पत्रों और संस्मरणों की चर्चा त्रिलोक महावर ने की उन्होंने शानी जी की मौजूदगी में जगदलपुर में गुजारे दिनों को याद किया। सूत्र पत्रिका के संपादक तथा कवि विजय सिंह ने शानी जी के लेखन के विषयों और समुंद तालाब जिसे अब दलपत सागर भी कहा जाता है को याद किया शानी जिसके किनारे बैठ कर अक्सर लेखन किया करते थे।
शानी जी की बेटी सूफिया शानी ने अपने बचपन की स्मृतियों को याद किया , उन्होंने इस आयोजन को “शानी की घर वापसी” निरूपित किया और इस आयोजन के लिये साहित्य अकादमी, संस्कृति परिषद को विशेष तौर पर धन्यवाद दिया।
अंत मे शानी जी की रचनाओं का पाठ विविध भारती आकाशवाणी के चर्चित प्रस्तोता कमल शर्मा ने शानी जी की युद्द कहानी और शालवनो का द्वीप के अंश का पाठ अपनी खनकती आवाज में किया, रंगकर्मी स्वप्निल हूदार ने भी कालाजल के एक अंश का पाठ किया।