रायपुर, 03 मार्च 2023/ होली के लिए आजकल बाजारों में मिलने वाल चटक और आकर्षक रंग केमिकलयुक्त होते हैं। जिससे स्किन को नुकसान पहुंचता है। यही नहीं बाजार में मिलने वाले ये रंग बच्चों के स्किन के लिए भी नुकसानदायक होतेहैं। सांस के माध्यम से भी केमिकलयुक्त रंग हमारे शरीर में पहुंचकर फेफड़ों कोभी नुकसान पहुंचाते हैं इसीलिए विशेषज्ञ ये सलाह देते हैं कि होली के लिएइस्तेमाल किए जाने वाले रंग केमिकल फ्री होने चाहिए। इसे ध्यान में रखते हुए दरभाके अल्वा गांव में पटेलपारा की महिलाएं पलाश के फूलों से होली के लिए गुलालतैयार कर रही हैं। बिहान की इन महिलाओं द्वारा तैयार किए जा रहे प्राकृतिक गुलाल पूरीतरह से केमिकल फ्री हैं इसीलिए ये गुलाल बाजार में मिलने वाले रंगों की जगह अच्छाविकल्प साबित होंगे।
गेंदा फूलस्व-सहायता समूह से जुड़ी लगभग 12महिलाओं के इस समूह ने अब तक 50 किलो के आस-पास गुलाल तैयार कर लिया है। जिन्हें ग्राम पंचायत के माध्यम से सीमार्ट तक पहुंचाया जा रहा है जहां से आम नागरिक केमिकल फ्री गुलाल खरीद सकेंगे। इन रंगों को तैयार करने के लिए पलाश के फूलों को सुखाकर पाउडर बनाया गया, जिसके बाद इसमें मक्के का आटा मिलाकर चिकना किया गया।इन्हें रंगीन बनाने के लिए भी प्राकृतिक चीजों का ही इस्तेमाल किया गया है। जैसे लालरंग के लिए लाल भाजी, पीला रंग के लिए हल्दी और हरे रंग के लिए मेथी और हरेरंग की भाजियों का इस्तेमाल किया गया है। समूह कीसदस्य सावित्री मंडावी का कहना है कि उन्हें 1 क्विंटल गुलाल बनाने का ऑर्डर मिला था,जिसे उनके समूह की महिलाएं बड़ी मेहनत से तैयार कर रही हैं। सावित्री बताती हैं किउनका यह गुलाल केमिकल फ्री होने की वजह से स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक नहीं है। इसेबच्चे-बूढ़े सभी उपयोग कर सकते हैं। स्थानीय बाजारों में भी ये महिलाएंअपने प्राकृतिक गुलाल को बेचेंगी। प्राकृतिक गुलाल बनानेके लिए इस्तेमाल किए जाने वाले पलाश के फूल के कई नाम हैं। इसे टेसू, ढाक,परसा, के शुक, और केसू भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि ऋतुराज वसंत की सुंदरता पलाश के बिना पूरी नहीं होती है। पलाश के फूल को वसंत का श्रृंगार माना जाता है।