राजनांदगांव 23 अगस्त.
जोगी सरकार, डॉ रमन सरकार, भूपेश बघेल की सरकार एवं समय – समय पर केन्द्र सरकार के मंत्रियों, प्रवक्ताओं ने भी बीएनसी मिल्स को पुनः चालू करने का दंभ भरा है। बीएनसी मिल्स को पुनः चालू करने की घोषणा अब तक केवल कपोल कल्पना ही साबित हुई है।
ये सरकारें वास्तव में बीएनसी मिल्स जैसा कोई उद्योग स्थापित करना यदि चाहती तो पन्द्रह साल रमन सरकार, दस साल मनमोहनसिंह की सरकार, दस साल मोदी की सरकार, पांच साल भूपेश बघेल की सरकार रही है। किसी रचनात्मक कार्य के लिए एवं बीएनसी मिल जैसे उद्योग स्थापना के लिए इन सरकारों के पास पर्याप्त समय था, कमी थी तो केवल प्रबल इच्छा शक्ति की, बेरोजगारों के प्रति संवेदना – हमदर्दी की, अतः अब बीएनसी हमारे अतीत में बेमिसाल धरोहर की तरह स्मृति में रहेगी।
बीएनसी मिल्स 5 सितम्बर 2002 को केन्द्रीय कानून – औद्योगिक विवाद अधिनियम 1948 के अन्तर्गत सदा के लिए बंद कर दी गई।
यह भी जान लेना गौरतलब है, कि 5 सितम्बर 2002 को जब बीएनसी मिल को अंतिम तौर बंद करने की घोषणा की गई, तब राज्य में दिवंगत अजीत जोगी की सरकार थी, केन्द्र में दिवंगत अटलबिहारी बाजपेई की सरकार थी, एवं उद्योग मंत्री डॉ रमनसिंह थे।
बीएनसी मिल के बंद हो जाने के बाद इतना कोलाहल के बावजूद दोपहर में मिल के आस – पास की आबादियों में अमूमन कोयल की मीठी सुरीली कुहूक की तान सुनने को मिल जाती है। कोयल जैसे अनेक जीव – जन्तु, पशु – पक्षी जहां अपना आशियाना – घोंसला बनायें है, वहां कभी सूती कपड़े का मिल हुआ करता था। विश्वस्तरीय मच्छरदानी के जाली बनाये जाते थे। विविध डिजाइनों के सूती कपड़ा बनता था। अध्ययन और मनोरंजन के लिए कल्याण केन्द्र हुआ करता था। कामगार महिलाओं के नवजात शिशुओं के लिए झूलाघर था। अधिकारियों के लिए टेनिस ग्राउंड, बालीबाॅल ग्राउंड थे, मज़दूरों के अलावा सभी लोगों के लिए जलपान के लिए कैंटीन था, कसरत – वर्जिश मल्लयुद्ध के लिए व्यायाम शाला था, ( है ) सूती कपड़े की रिटेल शाॅप थी, बीमा औषधालय था। रियासतकालीन नगर नांदगांव की मिल वर्तमान जिला मुख्यालय राजनांदगांव से बमुश्किल एक किलोमीटर की दूरी से लगा हुआ मिल का एरिया अब घने जंगल का रूप ले लिया है। यहीं वह स्थान है जहां चौबीसों घंटे इंसानी जिन्दगियां अपने – अपने आशियाने के लिए मेहनत कर रिज़्क का इंतजाम किया करते थे।
बंगाल नागपुर काॅटन मिल्स राष्ट्रीय वस्त्र निगम के अधीन एक उपक्रम थी। एनटीसी की स्थापना केन्द्र सरकार ने 1968 में किया था। बीएनसी मिल ( राष्ट्रीय वस्त्र निगम ) के कुप्रबंधन एवं सरकारों के गलत नीतियों और जनदृष्टि और इच्छाशक्ति के अभाव में जिला राजनांदगांव के हृदय स्थल को घने जंगल में तब्दील होने दिया। जब कभी मिलचाल की तरफ से गुजरना होता है, तो ऐसे लगता कि मानो राजनांदगांव की आत्मा अभी मरी नही है, केवल मरणासन्न है, कराह के साथ जर्जर हो चुकी है, लेकिन देह में स्पंदन अभी शेष है। सरकार और नागरिक समाज की ओर से कोई संयुक्त भागीरथ प्रयास से इसमें फिर से प्राण फूंका जा सकता है। बीएनसी मिल की बुनियाद पर अद्यतन तकनीकी युक्त प्रचुर श्रमशक्ति के साथ फिर से जनसूचना के लिए पोंगा बज सकता है। विज्ञान का अकाट्य नियम है, चीजें ज्यों की त्यों नही रहती आवश्यक रूप से बदलती है।
कौन कहता है कि आसमां में छेद नहीं हो सकता, जरा एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो। जनकवि दुष्यंत की यह विज्ञान सम्मत पंक्ति का आशय यह है, कि दुनिया का कोई भी काम असंभव नहीं है, बस बात इतनी सी है कि जो काम जितना कठिन होगा उसमें उतनी ही अधिक मेहनत लगानी होगी।