राजनांदगांव 5 अक्टूबर.
श्राद्ध पक्ष के अंतर्गत अपने पितरों को श्रद्धापुष्प अप्रित करने हेतु आचार्य इंदु भूषण ठाकुर व्याख्यान माला का आयोजन सनसिटी राजनंदगांव में संपन्न हु
संपूर्ण मानव जाति अपनी इतिहास से आज तक आभार और कृतज्ञता के संस्कारों से की पलतीऔर बढ़ती रही है। हम जो कुछ भी आज है उसका मूल हमारे अतीत में है। हजारों सालों से हमारे पूर्वजों ने ज्ञान संस्कार ,जीवन कौशल , अर्जित अनुभव,शरीर की परंपरा संपत्ति आदि नानाविध तरीकों से हमें पोषित किया है और कर रहे हैं।
इसी क्रम में नहीं आने वाली पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़े रखना और अपने अपने पितरों के प्रति आभार सहित श्रद्धा प्रदान करने हेतु श्रद्धा हेतु उक्त व्याख्यान माला का आयोजन किया गया।जिसका उद्देश्य अपनो की बात अपनो के साथ करके अपनापन बढ़ाना रहा है।
विगत 5 सालों से ऑफलाइन मॉड तथा ऑनलाइन में भी यह कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है जिसमें जन सहयोग की सहभागिता बढ़ रही है क्योंकि यह कार्यक्रम किसी एक व्यक्ति या एक परिवार का नहीं है ,सबका कार्यक्रम है।पितरों के प्रति सम्मान हमारी साझा संपत्ति है संस्कार है पितरों के अनुभव हम सबको एक साथ पोषित करते हैं पितरों के व्यक्तित्व और कृतित्व का स्मरण जहां हमें अपने कुल गौरव आत्म सम्मान को बढ़ता है वही आधुनिकता में हमें अपनी जड़ों से जोड़े रखता है ।
इंदुभूषण ठाकुर एक परिवार से जुड़े एक व्यक्ति नही है,वो उस हर किसी परिवार के उसे बुजुर्ग व्यक्ति के परिचायक पुरुष है जिन्होंने अपने जीवन में श्रेष्ठ मूल्य अर्जित किया और अपनी पीढ़ियों को शिक्षासंस्कार प्रदान किया। सभी के पितर श्रधेय है।
आचार्य इंदु भूषण ठाकुर आज भी अपने छात्रों के अपने हम उम्र लोगों की स्मृतियों में जिंदा है वह एक ऐसी पीढ़ी के परिचायक पुरुष रहे जिन्होंने सादा जीवन उच्च विचार के मापदंड स्थापित किया जिन्होंने शिक्षक होते हुए भी अपने वचनों के अपेक्षा अपने आचरण से शिक्षा दी । न झुकने वाली मजबूत रीड की हड्डी प्रखर प्रतिभा,और संवेदनशील मन ,कुशाग्र बुद्धि और तीन भाषाओं की जिह्वा में धारण करने वाले उद्भट विद्वान विचारक समाजसेवी इंदुभूषण ठाकुर उच्च नैतिक मूल्य के साथ जीते रहे..चाटुकारिता सेटिंग बाजी कि कला से दूर रहकर ।शायद यही कारण रहा कि उनका प्रतिभा व्यक्तित्व और कृतित्व उतना बाहर नहीं आ पाया जितना बाजार की भाषा समझने वाले अन्य लोगों का!
उक्त कार्यक्रम राजनांदगांव सनसिटी के सार्वजनिक सार्वजनिक प्रांगण में आयोजित किया गया जिसमें पितरों को हव्य और कव्य प्रदान किया गया जो कि हमारी परंपरा रही है !यज्ञ हवनके माध्यम से न केवल चेतन जगत को वरन अचेतन सहितसंपूर्ण चराचर प्रकृति को हव्य प्रदान किया गया ।उपस्थित लोगों ने अपने पितरों के अनुभव उनकी सीखो को साझा कर सबके चेतन और ज्ञान संस्कार को उन्नत किया और नहीं पीढ़ी के समक्ष मानक स्थापित किये । इससे सामाजिक समरसता भी मजबूत हुई जो श्राद्ध पक्ष को आयोजित करने का एक प्रमुख ध्येय हमारे पुरातन ऋषियों का रहा है।
उक्त कर्यक्रम में इस बरस सर्व प्रथम dr रुपाली हरीश गांधी के नेतृत्व में मृत आत्माओं के लिए दिवंगत आत्मा के लिए काली तिल आहुतियां दी गई,। अनेक गणमान्य व्यक्तित्वों ने जिसमें भूतपूर्ब सनेनिक श्यामराव कोटले,राष्ट्रपति पुरुस्कृत इंजीनियर नरेन्द्र कोडरिया, रामावतार गोयल,गोपाल खंडेलवाल,बद्रीनाथ महोबिया,बृज मोहन खंडेलवाल,मिश्रीलाल गोलछा,अतुल मीठिया,वेल ज़ी भाई,प्रवीण भाई चौहान, g l raju ,सुरेश भंसाली,मनमोहन साहू,रुपाली गाँधी
सविता अगग्रवाल
मधु लड्ढा
सुमन गुप्ता
शशि खंडेलवाल
आदि ने अपनी गरिमामयी उपस्थिति से अपने अपने पितरों को तृप्त किया।
इसके पूर्व ऑनलाइन मोड़ में भी अनेक प्रकांड विद्वान जैसे पण्डित राजेश दीक्षित त्रयम्बक नासिक आदि के उदबोधन हो चुके है।। बहुत से परिवार जन इस व्याख्यान माला में ऑनलाइन मोड़ पर जुड़ते है जैसे अमेरिका से ट्वींकल झा ।
इस प्रकार के आयोजन समय और समाज की सामयिक और महती आवश्यकता है।