सदियों से चलता आ रहा है रावन के गौरा चौक शिव मंदिर में खीर बनाने की परंपरा
बलौदाबाजार (रावन)- गांव के मुख्य चौक में प्रतिवर्षानुसार से चलता आ रहा है गौरा चौक शिव मंदिर में खीर बनाने की परंपरा
।आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि। शरद पूर्णिमा आश्विन मास में आती है, इसलिए इसे आश्विन पूर्णिमा भी कहते हैं।
शरद पूर्णिमा का महत्व
ज्योतिष के मुताबिक वर्ष में एक बार शरद पूर्णिमा के दिन ही चंद्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। ऐसी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत की बूंदें बरसती हैं, जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होती हैं। पूर्णिमा की चांदनी में खीर बनाकर खुले आसमान में रखते हैं, ताकि चंद्रमा की अमृत युक्त किरणें इसमें आएंगी और खीर औषधीय गुणों से युक्त होकर अमृत के समान हो जाएगा। उसका सेवन करना स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होगा। शरद पूर्णिमा के दिन द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के संग महारास रचाया था।शरद पूर्णिमा का महत्व लक्ष्मी पूजा के लिए भी है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, शरद पूर्णिमा को माता लक्ष्मी रातभर विचरण करती हैं। जो लोग माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं और अपने घर में उनको आमंत्रित करते हैं, उनके यहां वर्ष भर धन वैभव की कोई कमी नहीं रहती है। धर्म की मान्यता एवं शास्त्रों में भी लिखा है, कि शरद पूर्णिमा पर रात को निकलने वाली चांद की किरणें स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होती हैं।
दमा, श्वास व एलर्जी जैसे रोगों के लिए यह किरण कारगर साबित होती हैं।
आयुर्वेद ग्राम रावन के योग शिक्षक दीपक कुमार वर्मा बताते हुए कहा इस पर पूरी रिसर्च की गई। शास्त्रों पर रिसर्च कर यह आयुर्वेदिक औषधि बनाई गई हैं, जिसे चांद के सामने देर रात को दमा, श्वास, एलर्जी से पीड़ित मरीज शरद पूर्णिमा के दिन खीर में मिलाकर दवा खाते हैं।यह औषधियां के फार्मासिस्ट और वैघराज से सम्पर्क करें। वही माखन वर्मा, लक्ष्मण वर्मा, गणेश वर्मा, मानसिंह वर्मा,रोमनाथ यादव , रमेश वर्मा, मानसिंह वर्मा इत्यादि ने बताते हुए कहा सदियों से चलता रहा है शरद पूर्णिमा के शुभ अवसर पर खीर बनाने की परंपरा पुराना गौरा चौक शिव मंदिर रावन में चले आ रहे है।