डे बाबू की पूरी मौज…दिनेश अग्रवाल

आवारा कलम से
(मौज)
डिप्टी कलेक्टर की भी पोस्ट शान-ओ-शौकत की होती है। काम करने का तरीका और ईमानदारी दो बातों को कभी छोड़ना मत तो लोकप्रियता फिर तुम्हारे कदम चूंमेगी।
नई पोस्टिंग पर ज्वाइनिंग देने के बाद गौरव अपने पिता के नीति वाक्यों का स्मरण करते हुये ऑफिस में गुमसुम सा बैठा अपने आप में संकल्प ले रहा था कि पूरा काम लगन से और ईमानदारी से करुंगा। अपने पिता के सम्मान को वह और बढ़ायेगा, अभी नजूल का प्रभार मिला है जो कहते हैं कि ये फजूल का काम है, उन्हें कहने दो हम इसे काम का विभाग बनायेंगे।
गौरव की सोच पर तब विराम लगा जब प्यून ने सूचना दी कि साहेब कोई महिला आप से मिलना चाहती है। गौरव ने महिला को बुलाया जो वृद्धावस्था वश सीधी खड़ी भी नहीं हो पा रही थी। कुर्सी छोड़ कर गौरव ने उसे सहारा देकर सम्मान से बैठाया फिर पानी मंगा कर अपने स्थान पर बैठते हुये कहा “अम्मा पानी लीजिये फिर काम बताइये” अम्मा ने आंखों की पलकों को झपका कर मानो अधिकारी का धन्यवाद किया- फिर रो पड़ी और बोली, बेटा! पालिका का नोटिस मिला कि अपनी झोपड़ी का कागज दिखाओ वरना झोपड़ी हटाओ, मेरा कोई नहीं, कागज का पता नहीं, पर मरने के पहले वो जरुर कहते थे कि जमीन के कागज नजूल के रजिस्टर में भी दर्ज हैं। बेटा, उनकी नकल मिल जाती तो मेरी झोपड़ी बच जाती।
गौरव पूरे विश्वास से बोला जरुर अम्मा, मैं प्रयास करता हूं। गौरव ने बड़े बाबू को बुलवाया और कहा कि डे बाबू, ये अम्मा पालिका क्षेत्र में रहतीं है जमीन की नकल चाहतीं है दिलवा दो या अम्मा को यहीं बैठने दो आप ले आओ।
डे बाबू बोले सर, नकल तो आज ना मिल पायेगी इनको एक हफ्ते बाद बुलवा लें। गौरव चौंक कर बोले क्यों, मैं दिलवा रहा हूं फिर परेशानी क्या है? एक हफ्ते में तो इसकी झोपड़ी ही टूट जायेगी। डे बाबू ने बताया कि एहसान अली नहीं है वो एक हफ्ते बाद आयेंगे, ये पूरा काम वही देखते हैं।
गौरव क्रोध में बोला ये सरकारी दफ्तर है एहसान अली का नहीं कि काम बन्द रहेगा। वैसे जनाब गये कहां है, आप बतायेंगे क्या? डे बाबू बोले, सर वो गये तो अपना नया घर बनवाने के लिये है पर आवेदन गंभीर बीमारी का दे गये और सतर्क भी कर गये कि जब साहब आपत्ति करें तो मेरी लीव लगाना वरना हाजिरी भर देना–।
झल्ला कर गौरव ने कहा- जाइये रजिस्टर लाइये, उनकी ख़बर तो बाद में लेंगे। अम्मा आप बैठो, हम आप को निराश नहीं करेंगे। डे बाबू फिर भी खड़े थे। गौरव ने कहा कि आपने सुना नहीं कि मैंने फाइल मंगाई है? डे बाबू उवाच–फाइल तो वही रखें हैं और पैरा पैड पर रखे हैं मै कहां मगजमारी करूंगा।
आप लोग किसी की परेशानी नहीं समझते? नशेनी (सीढ़ी) लगा कर पैरापैड से फाइल लेकर आइये, पांच मिनट का है काम भला एक हफ्ते पर उसे क्यों टालें?
डे बाबू — ना साहेब मैं बड़े बाबू द्वितीय श्रेणी का होकर, तृतीय श्रेणी का काम क्यों करुंगा? फिर नशेनी (सीढ़ी) भी नहीं है। गौरव अब तमतमा कर बोला- काम सिर्फ काम होता है डे बाबू और नशेनी अपने विभाग ने खरीदी थी फिर गलत जानकारी क्यों दी जा रही है। अम्मा परेशान है अभी नशेनी लगवा कर वह फाइल निकालिये। डे बाबू ने शांति पूर्वक
जानकारी दी कि पिछली दीपावली पर नशेनी पी. एच. ई. वाले ले गये थे अब कहते हैं कि यह हमारी नशेनी (सीढ़ी) है।
अरे यार, तुम ऑफिस चला रहे हो कि भेड़ हांक रहे हो? उसके बिल और बाउचर सब पेपर उन्हें दिखाओ और जल्दी से नशेनी (सीढ़ी) मंगवाओ।
डे बाबू–अब क्या बतायें साहब, नशेनी की फाइल भी तो उसी पैरापेड पर ही रखी है। गौरव झल्लाते हुये आगे बढ़ा और चीख कर बोला- टेबिल पर स्टूल रखो- मै निकाल लूंगा वह फाइल। डे बाबू शांत स्वर में बोले- आप ही सब काम कर लेंगे तो हम सभी तृतीय-चतुर्थ श्रेणी के साथ मिलकर हड़ताल पे चले जायेंगे। उधर बाहर खड़े लड़के से बात करने के बाद वृद्धमहिला बोली- अब परेशान ना हो बेटा या बालकिशन कै छोरा आकर बताया कि उधर पालिका बाले हमारी झोपड़ी हटा कर चले गये–।
गौरव चाह कर भी लगन और ईमानदारी को अम्मा के सामने नहीं परोस सका। उधर डे बाबू पूरी मौज से फिर चाय पीने निकल पड़े।

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