आलापन बंद्योपाध्याय मसले पर केंद्र और ममता बनर्जी सरकार आमने-सामने

पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव आलापन बंद्योपाध्याय को डेपुटेशन पर दिल्ली बुलाने के फ़ैसले पर एक बार फिर केंद्र और ममता बनर्जी सरकार आमने-सामने हैं.
केंद्र सरकार ने बीती 28 मई को एक पत्र भेजकर मुख्य सचिव को 31 मई को दिल्ली में कार्यभार संभालने को कहा था. लेकिन राज्य सरकार ने उनको रिलीज़ नहीं करने का फ़ैसला किया है और गेंद केंद्र के पाले में डाल दी है.
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजे पत्र में साफ़ कर दिया है कि मौजूदा परिस्थिति में मुख्य सचिव को रिलीज़ करना संभव नहीं है.
उन्होंने इस फ़ैसले को वापस लेने, पुनर्विचार करने और आदेश को रद्द करने का भी अनुरोध किया है.
इस बीच, कई पूर्व नौकरशाहों ने भी मुख्य सचिव के औचक तबादले को ग़ैर-क़ानूनी बताते हुए राज्य सरकार के रुख़ का समर्थन किया है.
वैसे, इससे पहले बीते साल दिसंबर में भाजपा प्रमुख जे.पी. नड्डा के काफ़िले पर हुए हमले के बाद भी केंद्र ने अचानक तीन संबंधित आईपीएस अधिकारियों को डेपुटेशन पर दिल्ली पहुंचने का निर्देश दिया था. लेकिन राज्य सरकार और ममता बनर्जी के अड़ जाने की वजह से वह मामला दब गया था. उस समय भी केंद्र और राज्य आमने-सामने आ गए थे.
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र को लिखे पत्र में अपने फ़ैसले को वापस लेने का अनुरोध किया है
दरअसल, आलापन बंद्योपाध्याय 31 मई को रिटायर होने वाले थे. लेकिन मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद 10 मई को ममता बनर्जी ने कोरोना महामारी के कारण केंद्र को पत्र लिखकर मुख्य सचिव को तीन महीने का सेवा विस्तार देने का अनुरोध किया था.
उनके पत्र के आधार पर 24 मई को केंद्र ने इसकी अनुमति दे दी. लेकिन उसके बाद चक्रवाती तूफ़ान यास से हुए नुक़सान का जायज़ा लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब कलाईकुंडा एयरबेस में एक समीक्षा बैठक बुलाई तो उसमें न तो मुख्यमंत्री ने हिस्सा लिया और न ही मुख्य सचिव ने. उस समय बीजेपी ने इन दोनों पर प्रोटोकॉल के उल्लंघन का आरोप लगाया था.
ममता उस बैठक में क़रीब आधे घंटे की देरी से पहुंची थीं और प्रधानमंत्री को नुक़सान के बारे में रिपोर्ट सौंपकर वहां से दीघा रवाना हो गई थीं. लेकिन उसके कुछ देर बाद ही केंद्र ने मुख्य सचिव को डेपुटेशन पर 31 मई को दिल्ली पहुंचने का निर्देश दिया.
इसके बाद प्रशासनिक और राजनीतिक हलकों में ये बहस का मुद्दा बन गया. बीजेपी ने हालांकि इससे यह कहते हुए पल्ला झाड़ लिया था कि यह प्रशासनिक मामला है. पार्टी ने ममता और मुख्य सचिव पर प्रोटोकॉल का उल्लंघन करने और प्रधानमंत्री का अपमान करने का आरोप लगाया है.
लेकिन टीएमसी ने इसे बदले की कार्रवाई क़रार दिया. कई पूर्व आईएएस अधिकारियों ने भी इसकी टाइमिंग पर सवाल उठाते हुए इसे बदले की कार्रवाई बताया.
हालांकि अगले दिन यानी शनिवार को अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में ममता ने देर से पहुंचने और बैठक में हिस्सा नहीं लेने की वजह को साफ़ किया था.
उनका कहना था कि यह प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की बैठक नहीं थी. इसमें राज्यपाल और विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी को भी बुलाया गया था. इसलिए उन्होंने उसमें हिस्सा नहीं लिया.
बीजेपी के नेतृत्व वाले केंद्र पर ‘बदले की राजनीति’ का आरोप लगाते हुए ममता ने केंद्र सरकार से मुख्य सचिव को बुलाने के फ़ैसले को वापस लेने और कोविड-19 संकट के दौरान उनको लोगों के लिए काम करने की इजाज़त देने का अनुरोध भी किया था.
बनर्जी ने कहा था, “आप अपनी हार पचा नहीं पा रहे हैं, आपने पहले दिन से हमारे लिए मुश्किलें खड़ी करनी शुरू कर दीं. मुख्य सचिव की क्या ग़लती है? कोविड-19 संकट के दौरान मुख्य सचिव को बुलाना दिखाता है कि केंद्र बदले की राजनीति कर रहा है.”
राज्य सरकार और केंद्र के बीच आरोप-प्रत्यारोप में फंसे 1987 बैच के आईएएस अधिकारी मुख्य सचिव आलापन बंद्योपाध्याय शनिवार को चक्रवात प्रभावित पूर्व मेदिनीपुर के हवाई सर्वेक्षण में मुख्यमंत्री के साथ रहे.
यास तूफ़ान के बाद प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करतीं ममता बनर्जी और साथ में आलापन बंद्योपाध्याय
उन्होंने इस पूरे विवाद पर अब तक कोई टिप्पणी नहीं की है. लेकिन वो रविवार को भी राज्य सचिवालय पहुंचे और वहां कई घंटे रहे थे.
यह कयास तो पहले से लगाए जा रहे थे कि ममता बनर्जी आलापन को दिल्ली जाने की अनुमति नहीं देंगी.
इसके साथ ही उनके अनुरोध पर केंद्र ने भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. इससे इस मुद्दे पर टकराव तय हो गया था.
अब सोमवार को ममता ने प्रधानमंत्री को भेजे अपने पत्र में तमाम परिस्थितियों का हवाला देते हुए साफ़ कर दिया है कि फ़िलहाल मुख्य सचिव को दिल्ली भेजना संभव नहीं है
भारतीय प्रशासनिक सेवा (कैडर) नियम-1954 के नियम 6 (1) के तहत किसी राज्य के कैडर के अधिकारी की प्रतिनियुक्ति केंद्र, दूसरे राज्यों या सार्वजनिक उपक्रम में संबंधित राज्य की सहमति से की जा सकती है.
भारतीय प्रशासनिक सेवा (कैडर) नियम-1954 के तहत इस मुद्दे पर केंद्र और राज्य में सहमति नहीं होने की स्थिति में केंद्र का फ़ैसला ही लागू होता है. लेकिन ममता का आरोप है कि राज्य सरकार से सलाह-मशविरा किए बिना केंद्र का यह फ़ैसला ग़ैर-क़ानूनी और संघवाद की अवधारणा का उल्लंघन है.
राज्य सरकार ने साफ़ कर दिया है कि वह मौजूदा हालात में मुख्य सचिव को दिल्ली जाने की अनुमति नहीं देगी. अब आगे क्या होगा?
पूर्व नौकरशाहों और विशेषज्ञों का कहना है कि अब गेंद केंद्र के पाले में है. क्या वह आलापन को दिया गया एक्सटेंशन वापस ले लेगा या फिर उनके ख़िलाफ़ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी या फिर उनके सर्विस रिकॉर्ड पर इसका प्रतिकूल असर होगा? ऐसे तमाम सवालों के जवाब केंद्र के अगले क़दम पर निर्भर हैं.
पूर्व मुख्य सचिव बासुदेब बनर्जी की राय में केंद्र के अगले क़दम के बाद आलापन इस आदेश को क़ानूनी रूप से चुनौती दे सकते हैं. उनके सामने कैट में जाने का विकल्प भी खुला है.
पूर्व मुख्य सचिव राजीव सिन्हा का कहना है कि इस मामले में संबंधित अधिकारी की कोई भूमिका नहीं होती. अगर राज्य सरकार उसे रिलीज़ नहीं करती तो वह कुछ नहीं कर सकता.
केंद्र ने जिस तरह चार दिनों के भीतर अपना रुख़ बदला है, उससे कई सवाल खड़े होते हैं. पूर्व आईपीएस नज़रुल इस्लाम तो कहते हैं कि इस फ़ैसले को अदालत में चुनौती दी जानी चाहिए. इसमें इतनी ख़ामियां हैं कि केंद्र के लिए अदालत में इसका बचाव करना मुश्किल है.
रविवार से ही राज्य के राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों में सबसे ज़्यादा चर्चा इसी मुद्दे की हो रही है. अब सबकी निगाहें केंद्र के अगले क़दम पर टिकी हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *