नई दिल्ली 20 सितम्बर । पंजाब में कैप्टेन अमरिंदर सिंह की मुख्यमंत्री पद से विदाई इस बात का संकेत है कि अब पार्टी की कमान पूरी तरह से राहुल और प्रियंका के हाथ में है और सोनिया गांधी अपने पुराने सहयोगियों को सिर्फ ‘आई एम सॉरी’ बोलने की जिम्मेदारी निभाएंगी। यह कांग्रेस पार्टी के नए दौर की शुरुआत है क्योंकि कैप्टेन को मुख्यमंत्री पद से हटा कर राहुल गांधी ने वह काम किया है, जो वे पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते भी नहीं कर पाए थे।
इससे पहले राहुल और प्रियंका अपनी पसंद के लोगों को आगे बढ़ाते थे। मनमोहन सिंह की दूसरी सरकार में मंत्री भी बनवाया था। कई राज्यों में प्रदेश अध्यक्ष बनवाए और तमाम विफलता के बावजूद उनको बनवाए रखा। लेकिन यह पहला मौका है, जब उन्होंने किसी बड़े नेता को इस तरह से हैसियत दिखाई है। सोनिया गांधी ने खुद भी कभी इस तरह की राजनीति नहीं की, जैसी कैप्टेन के मामले में राहुल और प्रियंका ने की है।
ध्यान रहे कैप्टेन अमरिंदर सिंह पांच दशक से ज्यादा समय से सोनिया गांधी को जानते हैं। वे लंदन से ही राजीव और सोनिया गांधी के करीबी थे और भारत लौटने के बाद भी परिवार के साथ उनकी दोस्ती कायम रही थी। सोनिया गांधी से उनकी इतनी करीबी थी कि उन्होंने कभी भी राहुल गांधी को ज्यादा तरजीह नहीं दी। राहुल जब राष्ट्रीय अध्यक्ष थे तब भी कैप्टेन ने उनकी बजाय सोनिया गांधी से ही राजनीति पर चर्चा की। ऐसी भी खबरें आई थीं कि कैप्टेन ने राहुल के सामने दो टूक कह दिया कि वे इस बारे में वे उनकी मम्मी यानी सोनिया गांधी से बात करेंगे। सोनिया ने भी राहुल को नसीहत दी थी कि कैप्टेन से बात करते हुए वे इस बात का ध्यान रखें कि वे अपने पिता के दोस्त से बात कर रहे हैं। कैप्टेन ने खुद बताया है कि वे दो साल से राहुल से नहीं मिले हैं। राहुल और उनके करीबी इस बात से बहुत आहत रहते थे। उन सब बातों का हिसाब कैप्टेन से कर लिया गया है।
इससे पहले राहुल और प्रियंका ने या सोनिया गांधी ने ही किसी बड़े नेता को इस तरह बेआबरू करके कब पद से हटाया था? सोनिया के पार्टी की कमान संभालने के बाद से अब तक 23 साल में किसी के साथ ऐसी बेअदबी नहीं हुई। जिसको पद पर बैठाया वह बैठा रहा। यह पहली बार हुआ कि लोग 10 साल 15 साल मुख्यमंत्री बने रहे। सोनिया गांधी से पहले इंदिरा और राजीव गांधी के कार्यकाल में बिरले ही कोई मुख्यमंत्री होगा, जिसने कार्यकाल पूरा किया होगा। दूसरी ओर सोनिया, राहुल और प्रियंका की कमान में महाराष्ट्र को छोड़ दें, जहां कई बार मुख्यमंत्री बदले गए तो संभवतः देश के किसी भी राज्य में मुख्यमंत्रियों को नहीं बदला गया। इन तीनों प्रदेशों में ऐसे क्षत्रप बनने दिए, जिन्होंने कालांतर में पार्टी आलाकमान को ही आंख दिखानी शुरू कर दी। बहरहाल, जो काम सोनिया गांधी नहीं कर सकीं वह काम राहुल और प्रियंका ने कर दिखाया। उन्होंने बड़ा जोखिम लिया है लेकिन नेतृत्व की धमक और इकबाल बनाने के लिए यह जरूरी काम था। अब अगर दोनों इस काम को आगे जारी रखते हैं तो नई कांग्रेस का जन्म होगा।