ई-फाइलिंग एवं मध्यस्था पर दिया जोर
लंबित प्रकरणों को तत्काल करें निराकरण-श्री मिश्रा
कोरिया 06 जनवरी 2024/ भारत सरकार के उपभोक्ता संरक्षण मामले में संयुक्त सचिव एवं विकसित भारत संकल्प यात्रा के कोरिया जिले के नोडल अधिकारी श्री अनुपम मिश्रा का तीन दिवसीय कोरिया प्रवास के दौरान उन्होंने बैकुण्ठपुर स्थित जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग का किया निरीक्षण।
छत्तीसगढ़ राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग छत्तीसगढ़ में एक अर्ध-न्यायिक आयोग है, जिसे 2003 में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत स्थापित किया गया था। इसका मुख्य कार्यालय रायपुर (सी.जी.) में और सर्किट बेंच बिलासपुर (सी.जी.) में है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 47(1)(ए)(प) में प्रावधान है कि राज्य उपभोक्ता आयोग के पास अधिकार क्षेत्र होगा- दस करोड़ रूपए तक की शिकायत पर विचार करने के लिए और आदेशों से उत्पन्न अपीलीय और पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार भी होगा। जिला आयोगों के क्षेत्राधिकार में वे शिकायतें आएंगी, जहां वस्तुओं या सेवाओं के लिए किए गए भुगतान का मूल्य 50 लाख रुपये से ज्यादा न हो। जिला आयोग उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 41 में प्रावधान है कि जिला आयोगों के आदेश से पीड़ित कोई भी व्यक्ति ऐसे आदेश के खिलाफ 45 दिनों की अवधि के भीतर राज्य उपभोक्ता आयोग में अपील कर सकता है।
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग के अध्यक्ष श्री राजेन्द्र प्रधान ने लंबित व निराकरण प्रकरणों के बारे में जानकारी देते हुए बताया वर्ष 2022 एवं वर्ष 2023 में 2 हजार 278 प्रकरण था। इसमें से एक हजार 2 हजार 103 प्रकरणों का निपटारा किया है और 180 लंबित और 5 प्रकरणों को पुनः विचारनीय में लिया गया है इस तरह प्रकरण निपटाने में 92.2 रहा।
संयुक्त सचिव श्री अनुपम मिश्रा ने सबसे अधिक लंबित प्रकरण के बारे में जानकारी लेने पर अध्यक्ष ने बताया कि इंश्योरेंस का मामला ज्यादा अधिक है। श्री मिश्रा ने ई-फाइलिंग करने तथा मध्यस्था पर जोर देते हुए कहा कि आम उपभोक्ता आसानी उपभोक्ता फोरम के पोर्टल में जाकर अपना प्रकरण दर्ज करा सकते हैं, इसी तरह मध्यस्था से बहुत सारी समस्याएं दूर हो जाते हैं। श्री मिश्रा ने उपभोक्ता के जनजागरण के लिए कार्यालय में पोस्टर या बोर्ड के माध्यम से जानकारी लगाने के निर्देश भी दिए तथा लंबित प्रकरणांे शीघ्र निपटाने कहा गया साथ ई-फाइलिंग कार्य को बढ़ावा देने पर बल दिया।
बता दें आम उपभोक्ताओं को छोटे-छोटे वस्तुओं या सामग्रियों के नुकसान की भरपाई या उनके सही गुणवत्ता के लिए एजेंसी या दुकानदार के साथ आए दिन विवाद होने की खबर होते हैं। सार्वजनिक क्षेत्र की सेवा एजेंसियों, व्यापारी, निर्माता, ऑटो डीलर और सेवा प्रदान करने वाली एजेंसियों के शोषणकारी रवैये के कारण कई उपभोक्ताओं को नुकसान उठाना पड़ता है। उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के उद्देश्य से, संसद द्वारा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 लागू किया गया था जो 24 दिसंबर, 1986 से लागू हुआ। यह अधिनियम उपभोक्ताओं के हितों की बेहतर सुरक्षा प्रदान करने वाला एक सामाजिक कल्याण कानून है।