भाजपा की केन्द्र सरकार ने कोविड-19 के पूर्व तक अपने 6 साल के कार्यकाल में देश के लिए एक भी वेंटिलेटर नहीं खरीदे- विकास उपाध्याय
टेंडर में एक ही तरह के स्पेसिफ़िकेशन वाली अलग-अलग कंपनी के वेंटिलेटर्स की क़ीमत में 7 से 8 गुना का अंतर- विकास उपाध्याय
भारत के मानकों के तहत किसी कंपनी ने सर्टिफिकेट का आवेदन नहीं किया यही वजह है कि घटिया वेंटिलेटर की सप्लाई हुई
भाजपा के नेता झूठी दलील दे रहे हैं।जबकि केन्द्र सरकार ने वेंटिलेटर खरीदी में भारी भ्रष्टाचार किये
रायपुर। कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव विकास उपाध्याय ने देश की लचर स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर आज बड़ा खुलासा किया है।उन्होंने कहा, यूपीए शासनकाल के दौरान सरकारी अस्पतालों में कुल आईसीयू बेड के हिसाब से देश में जो 18 से 20 हज़ार वेंटिलेटर उपलब्ध थे। उसके अलावा भाजपा की केन्द्र सरकार ने कोविड-19 के पहले तक एक भी वेंटिलेटर की खरीदी नहीं कि बीते साल पीएम केयर्स फंड से 2000 करोड़ रुपए वेंटिलेटर्स के लिए दिए गए थे। जिसमें 58 हज़ार 850 वेंटिलेटर्स में से तक़रीबन 30 हज़ार वेंटिलेटर्स ख़रीदे गए।जबकी भारत में कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए डेढ़ लाख तक वेंटिलेटरों की ज़रूरत हो सकती है।इसमें भी एक ही सरकारी टेंडर में एक ही तरह के स्पेसिफ़िकेशन वाली अलग-अलग कंपनी के वेंटिलेटर्स की क़ीमत में भारी अंतर है।
विकास उपाध्याय ने केन्द्र की भाजपा सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा कि केन्द्र की भाजपा सरकार ने अपने 7 साल के शासन काल में 6 साल तक देश के स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर कुछ भी नहीं किया बल्कि वह यूपीए सरकार के दौरान जो व्यवस्था की गई थी उसी के भरोसे ही रही। 27 मार्च 2020 को प्रधानमंत्री मोदी ने पीएम केयर्स फंड का ऐलान किया। इस फ़ंड को कोविड-19 को देखते हुए शुरू किया गया था, जबकि पीएम केयर्स फंड पहले से मौजूद था। हालाँकि इस फ़ंड में कितने पैसे जुटे और उन पैसों का क्या हुआ इसकी जानकारी नहीं मिल सकती क्योंकि सरकार ने इस फंड को काफ़ी आलोचना के बावजूद सूचना के अधिकार संबंधी आरटीआई एक्ट के दायरे से बाहर रखा है।
विकास उपाध्याय ने आगे कहा,जब पिछले साल देश में कोरोना के मामले बढ़े तो एक बात जो पूरी तरह साफ़ हो चुकी थी वो ये कि अस्पताल आने वाले कोविड-19 से संक्रमित लोगों को साँस लेने में परेशानी हो रही है और देश में वेंटिलेटर की बड़ी कमी है। तब जाकर मोदी सरकार ने पीएम केयर्स फंड से ऑर्डर किए गए 58 हज़ार 850 वेंटिलेटर्स में से तक़रीबन 30 हज़ार वेंटिलेटर्स ख़रीदे और जैसे ही कोरोना की पहली लहर का ज़ोर कम होने लगा वैसे ही वेंटिलेटर की ख़रीद में ढील बरती गई और एचएलएल की ओर से कहा गया कि सरकार वैक्सीनेशन पर ज़ोर दे रही है और इतने वेंटिलेटर की ज़रूरत नहीं है। इस बीच वैक्सिनेशन की रफ्तार को भी ठंडे बस्ते में डाल केन्द्र सरकार विदेशों में निर्यात करने जुट गई। यही वजह है कि आज भारत में कुल आबादी का 12% भी वैक्सिनेशन नहीं हो सका है।
विकास उपाध्याय ने आगे बताया केन्द्र की भाजपा सरकार ने वेंटिलेटर की खरीदी में भी भारी भ्रष्टाचार किया। सरकारी टेंडर में एक ही तरह के स्पेसिफ़िकेशन वाली अलग-अलग कंपनी के वेंटिलेटर्स की क़ीमत में भारी अंतर है। अलाइड मेडिकल के एक वेंटिलेटर की क़ीमत 8.62 लाख है और एग्वा के एक वेंटिलेटर की क़ीमत 1.66 लाख है यानी कीमत में सात-आठ गुना तक का अंतर है। इसमें भी एग्वा हेल्थकेयर जिसे नीति आयोग ने ख़ासा प्रचार-प्रसार दिया उसके पास वेंटिलेटर बनाने कोई तजुर्बा नहीं था लेकिन उसे 10 हज़ार वेंटिलेटर का ऑर्डर दिया गया. एग्वा ने कार बनाने वाली कंपनी मारूति की मदद से वेंटिलेटर बनाए जो अब तक 5 हज़ार वेंटिलेटर डिलीवर कर चुका है।
विकास उपाध्याय आगे बताते हैं।डायरेक्टर जनरल ऑफ़ हेल्थ सर्विस यानी डीजीएचएस की टेक्निकल कमेटी के क्लीनिकल ट्रायल के बाद तीन वेंटिलेटर निर्माता पीएम केयर्स के लिए वेंटिलेटर बना रहे थे। जिनमें बीईएल- 30 हज़ार, एग्वा-10 हज़ार और अलायड-350 वेंटिलेटर. कुल वेंटिलेटर जो बन रहे थे उनकी संख्या 58 हज़ार 850 से घटकर 40 हज़ार 350 पर आ गई। इससे साफ जाहिर है कि केन्द्र की मंशा वेंटिलेटर की पूर्ति को लेकर बिल्कुल भी नहीं थी।एक और बात जो समझना मुश्किल है वो ये कि जब एचएलएल ने टेंडर निकाला तो उसके फ़ीचर्स एक कमेटी ने तय किए थे और ये शर्त रखी गई कि हर निर्माता को वेंटिलेटर में ये फ़ीचर रखने होंगे। ऐसे में बेसिक और हाई एंड का अंतर कहां से आया और बेसिक के फ़ीचर और हाई एंड वेंटिलेटर के फ़ीचर एक-दूसरे से कैसे अलग होंगे इस पर कुछ भी स्पष्ट नहीं है।
विकास उपाध्याय ने छत्तीसगढ़ के भाजपा नेताओं द्वारा वेंटिलेटर खरीदी को लेकर दी जा रही दलित को कोरा झूठ बताते हुए कहा, वेंटिलेटर खरीदी में पूरे अधिकार केन्द्र अपने पास रखा और खुल कर भ्र्ष्टाचार किया।जो वेंटिलेटर डिस्पेच भी हुए वो घटिया क्वालिटी के हैं। ये वेंटिलेटर दो-तीन घंटे में ख़ुद ही बंद हो जाते हैं, कई बार ऑक्सीजन प्रेशर डाउन हो जाता है। इसमें ऑक्सीजन सेंसर ही नहीं हैं, इसलिए पता ही नहीं चलता कि मरीज को कितनी ऑक्सीजन मिल रही है। वेंटिलेटर कब धोखा दे जाए और मरीज को दूसरे वेंटिलेटर पर लेना पड़े। विकास उपाध्याय ने सवाल किया कि भारत में बनने वाले ये वेंटिलेटर्स जिनकी क्वालिटी को लेकर बार-बार सवाल उठ रहे हैं उन्होंने भारत के मानकों के तहत सर्टिफिकेट का आवेदन क्यों नहीं किया और केन्द्र सरकार चुप्पी साधे हुई है।