रायपुर, 28 नवम्बर 2021 : संस्कृति मंत्री अमरजीत भगत ने कहा कि जब दो व्यक्तियों में परस्पर अभिव्यक्ति होती है तो अंदर से भाषायी उद्गार होता है। अर्थात् अंदर की भाव की अभिव्यक्ति की भाषा होती है। राज्य सरकार मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ की कला-संस्कृति, परम्परा, बोली भाखा, तीज-त्यौहार, रहन-सहन, खान-पान, वेश-भूषा जैसे अनेक विविधताओं से भरे पारंम्परिक, संस्कृति एवं लोककला को सहेजने और संवारने का काम कर रहे है। संस्कृति मंत्री भगत ने आज राजभाषा आयोग द्वारा महंत घासीदास संग्राहालय सभागार में छत्तीसगढ़ी राज भाषा दिवस पर साहित्यकारों-भाषाविदों के सम्मान समारोह को सम्बोधित कर रहे थे।
संस्कृति मंत्री भगत ने कहा कि कोई भी भाषा एक दिन में नहीं सीखी जा सकती। यह नियमित चलने वाली प्रक्रिया है। बच्चा सर्वप्रथम अपने मां के द्वारा बोले जाने वाली बोली अथवा भाषा को सिखते हैं। अर्थात माता ही बच्चों के प्रथम पाठशाला होती है। उन्होंने कहा कि हम सबको मिलकर छत्तीसगढ़ी भाषा को और आगे ले जाने की जरूरत है। भगत ने कहा कि गत माह राज्य सरकार द्वारा राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का आयोजन किया गया। इस राष्ट्रीय महोत्सव में प्रदेश के 27 राज्य, 6 केन्द्र शासित प्रदेश सहित 7 विभिन्न देशों के कलाकार और प्रतिनिधि नृत्य महोत्सव में शामिल हुए। महोत्सव में चारों ओर ‘‘छत्तीसगढ़ीया, सबले बढ़िया’’ के नारे गूंज रहे थे। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की दूरदृष्टि सोच और राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के आयोजन से छत्तीसगढ़ की नृत्य, कला और संस्कृति सहित छत्तीसगढ़ी बोली भाखा को आदिवासी नृत्य के माध्यम से देश और दुनिया में एक नई पहचान मिली है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ भगवान श्रीराम माता कौशल्या की जन्म भूमि है। यह कण-कण में राम है, छत्तीसगढ़ में लोग भांजे को राम के रूप में पूजते हैं, ऐसे गौरवशाली धरती के गौरवशाली छत्तीसगढ़ी भाषा को आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता।
सम्मान समारोह को संस्कृति विभाग के सचिव अल्बंगन पी. और संचालक विवेक आचार्य ने भी सम्बोधित किया है। स्वागत भाषण राजभाषा आयोग के सचिव डॉ. अनिल कुमार भतपहरी ने दिया। सम्मान समारोह के पश्चात उपस्थित भाषाविदों-साहित्यकारों ने छत्तीसगढ़ी भाषा के मानिकीकरण निर्माण, छत्तीसगढ़ी भाषा को राज-काज और पाठ्यक्रम के विषयों में शामिल करने आदि विषयों पर परिचर्चा विस्तार पूर्वक परिचर्चा की। भाषाविदों और साहित्यकारों ने परिचर्चा के दौरान छत्तीसगढ़ी भाषा को आगे बढ़ाने के साथ-साथ छत्तीसगढ़ी भाषा मानकीकरण, राज-काज में शामिल करने, पाठ्यक्रम के विषयों में शामिल करने महापुरूषों के लेखन आदि पर विचार विमर्श सहित छत्तीसगढ़ी भाषा को 8वीं अनुसूची में शामिल कराने के प्रयासो के संबंध में अपने-अपने सुझाव दिए। सम्मान समारोह में विधायक गुलाब कमरो विशेष रूप से उपस्थित थे। अतिथियों को स्मृति चिन्ह भेंट किया गया। इस अवसर पर लेखक, कवि, कलाकर तथा अन्य कला के क्षेत्र से जुड़े प्रबुद्ध जन बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
संस्कृति मंत्री भगत प्रदेश के जिन साहित्यकारों-भाषाविदों को सम्मानित किया। उनमें रायगढ़ के सेवानिवृत्त प्राचार्य एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. बिहारी लाल साहू, नवापारा खैजा के सेवानिवृत्त व्याख्याता हर प्रसाद निडर, शासकीय महाविद्यालय महासमुंद की प्राध्यापक डॉ. अनुसुईया अग्रवाल, सेवानिवृत्त प्रोफेसर एवं चंदैनी गोंदा के उद्घोषक डॉ. सुरेश देशमुख, मगरलोड के वरिष्ठ साहित्यकार पुनूराम साहू, दुर्ग के वरिष्ठ साहित्यकार एवं पूर्व बैंक प्रबंधक अरूण निगम, कुडुख, सादरी एवं हिन्दी कविता और कहानी लेखक एवं सहायक प्राध्यापक जशपुर डॉ. कुसुम माधुरी टोप्पो, दुर्ग के वरिष्ठ साहित्यकार एवं गीतकार गिरवरदास मानिकपुरी, रायपुर के वरिष्ठ साहित्यकार एवं गीतकार तथा नगरीय प्रशासन संचालनालय में निज सचिव रमेश विश्वहार, महासमुन्द के पूर्व सहायक पशु चिकित्सा परिक्षेत्राधिकारी बंधु राजेश्वर खरे, वरिष्ठ छत्तीसगढ़ी उद्घोषक एवं कार्यक्रम अधिकारी आकाशवाणी रायपुर के श्याम वर्मा, रायपुर के वरिष्ठ पत्रकार पहट पत्रिका गुलाल वर्मा, हरिभूमि चौपाल के सम्पादक डॉ. दीनदयाल साहू दुर्ग, न्यूज 24 म.प्र-छ.ग. के सम्पादकीय सलाहकार संदीप अखिल रायपुर, न्यूज 36 वेब चैनल के सम्पादक नवीन देवांगन बिलासपुर, बिलासपुर की वरिष्ठ साहित्यकार सुलता राठौर, सरगुजिहा भाषा की पत्रिका के प्रकाशक एवं सेवानिवृत्त बैक अधिकारी डॉ. सुधीर पाठक अंबिकापुर, गोंडी भाषा की साहित्यकार सुजयमति कश्यप कोण्डागांव और रायपुर की वरिष्ठ छत्तीसगढ़ी उद्घोषिका श्रीमती तृप्ति सोनी शामिल हैं।